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करूणा

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किसी पीड़ा को आत्मसात कर  पीड़ित के प्रति उद्गार और तन्मयी कर्म करुणा है,करूणा अंर्तमन की पुकार है,प्राणि मात्र के प्रति संवेदना और उनकी आह से द्रवित होना करुणा है,दु:ख की अनुभूति से हृदय में जन्मा स्वप्रेरित मनोवेग करूणा है।सत्य,प्रेम,दया,क्षमा, अहिंसा और करूणा सभी मानवीय मूल्य एक-दूसरे के पूरक हैं, इनसे तृप्त आत्मा में परमात्मा का वास होता है,सोहं का भाव होता है।इन सभी मानवीय मूल्यों में करूणा राजरानी है,स्वयं देवी है  "या देवी सर्वभूतेषु करूणा रुपेण संस्थिता नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः"! किसी एक का अभाव दूसरे के भाव में न्यूनता है, कभी-कभी बेईमानी भी।प्रेम की पूर्णता प्रेमारीति में है,प्रेमारीति: में प्रेमी निष्ठाभाव से समर्पित होते हैं,प्रेमवश एक-दूसरे को सुख ही पंहुचना चाहते हैं, अपने-अपने हिस्से का दु:ख छिपाकर।"मेरा हर सुख तुझे समर्पित,तेरा दु:ख मैं पालूं।जीना-मरना तेरे हित में धन्य भाग यह मानूं।। लौकिकता में यह जरूरी नहीं कि जिसे हम प्रेम करें वह भी हमें प्रेम करे,क‌ई बार तो प्रेम पाने वाले को पता भी नहीं चलता कि कोई उसे कितना प्रेम करता है,क...