'आयकर पर प्रधानमंत्री जी की अभिनंदनीय चिंता'

'आयकर' पर गहरी चिंता प्रधानमंत्री जी की अभिनंदनीय है,लेकिन आयकर के बड़े चोरों पर डंडा भी जन-गण-मन मनोरथ है।मेरे सरकार!न खांऊगा तो ठीक है,चरितार्थ भी है लेकिन 'खाने नहीं दूंगा' अपुष्ट है,चरितार्थ भी नही है।गौरतलब है कि "न खांऊगा न खाने दूंगा" यह ध्येय श्लोगन था आगाज था बतौर सरकार माननीय प्रधानमंत्री जी का।नौकरशाह,उद्योगपति,और माननीय तमाम न केवल खा रहें हैं बल्कि बांध के भी ले जा रहें,खाने का आलम यह है कि न बदहजमी का ख्याल है न रोग की चिंता है और न ही दूसरे किसी के निवाले की।व्यवसायों के पंजीकरण और पैन पर निगरानी जरूरी है।किसान बने उद्यमियों/नौकरशाहों और अकूत संपित्त के माननीयों पर मय वसूली दंडात्मक कार्यवाही आग्रह की विषय वस्तु है।जमीन से जुड़े नेतृत्व की परिभाषा और मायने बदल गए हैं,मतलब ग्रामीणांचल से लेकर अर्बन और महानगरीय जमीनों बेशुमार लगाव शोध का विषय है,कुछ नराधमों का दो चार बीघे से जमीनी जुड़ाव है तो बहुतों का दस-बीस-पचास बीघे से। अदायगी के संबंध में माननीय प्रधानमंत्री जी के आग्रह को क्रियात्मक रूप में स्वीकार करना जन-गण की नैतिक जिम्मेवारी भी है।साथ में सरकार का भी राजधर्म है कि बैंकिंग वित्त पोषण से जन-गण-मन को भी पुष्ट करे,जन सामान्य के लिए सहज करे,सरल करे,सुलभ करे।बैंक शाखाओं/प्रबंधकों की बैंकगिरी का उल्लेख प्रासंगिक है।
                                सदा शुभेच्छु

                   नरेन्द्र नाथ त्रिपाठी 

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