युद्ध और बुद्ध संतुलित भव्य भारत!
वैसे तो युद्ध और बुद्ध में केवल एक वर्ण का अंतर है लेकिन यही एक वर्ण का चयन देश -दुनिया को तबाह भी कर सकता है और आबाद भी रख सकता है।हितों का टकराव जब होता है तब मसले संवाद,बात और समझौतों से करने की कोशिश सर्वमान्य होती है, जब बात से बात न बने तो कूटनीतिक कोशिश कामयाब हो सकती है लेकिन जब कूटनीतिक कोशिश भी विफल होती है और हितों का यह टकराव चरमोत्कर्ष पर हो जाता है,आन-बान-स्वाभिमान और संप्रभुता प्रभावित होने लगती है तो युद्ध का दु:खारंभ होता है,और अपवाद छोड़कर युद्ध की पहल धनबल,बाहुबल,सशक्त सैन्य बल संपन्न की ओर से होती है,पहल करने वाले के पास मजबूत आधार होना देश -दुनिया के प्रति उसकी जवाबदेही सुनिश्चित करती है।यूक्रेन और रूस के मध्य युद्ध इसी घटनाक्रम की परिणति है। इस घटित युद्ध की शक्ल महायुद्ध और फिर विश्व युद्ध में रूपांतरित होने की संभावनाएं प्रबल तब हो जाती हैं जब उत्प्रेरक स्वयं अमेरिका और पश्चिमी देशों का झुंड हो,नैटो देश हों।कहीं न कहीं हथियारों की मंडी को हवा देने की कलुषित कोशिश भी उजागर होती है और हथियारों के बड़े ...