युद्ध और बुद्ध संतुलित भव्य भारत!
वैसे तो युद्ध और बुद्ध में केवल एक वर्ण का अंतर है लेकिन यही एक वर्ण का चयन देश -दुनिया को तबाह भी कर सकता है और आबाद भी रख सकता है।हितों का टकराव जब होता है तब मसले संवाद,बात और समझौतों से करने की कोशिश सर्वमान्य होती है, जब बात से बात न बने तो कूटनीतिक कोशिश कामयाब हो सकती है लेकिन जब कूटनीतिक कोशिश भी विफल होती है और हितों का यह टकराव चरमोत्कर्ष पर हो जाता है,आन-बान-स्वाभिमान और संप्रभुता प्रभावित होने लगती है तो युद्ध का दु:खारंभ होता है,और अपवाद छोड़कर युद्ध की पहल धनबल,बाहुबल,सशक्त सैन्य बल संपन्न की ओर से होती है,पहल करने वाले के पास मजबूत आधार होना देश -दुनिया के प्रति उसकी जवाबदेही सुनिश्चित करती है।यूक्रेन और रूस के मध्य युद्ध इसी घटनाक्रम की परिणति है।
इस घटित युद्ध की शक्ल महायुद्ध और फिर विश्व युद्ध में रूपांतरित होने की संभावनाएं प्रबल तब हो जाती हैं जब उत्प्रेरक स्वयं अमेरिका और पश्चिमी देशों का झुंड हो,नैटो देश हों।कहीं न कहीं हथियारों की मंडी को हवा देने की कलुषित कोशिश भी उजागर होती है और हथियारों के बड़े सौदागर कौन हैं ? यह जग जाहिर है।मतलब तथाकथित बड़े और विकसित देशों की सोंच भी बड़ी हो जरूरी नहीं कुल मिलाकर चित्त और पट,सह और मात का खूनी खेल उनके स्वार्थ को सिद्ध करता है,वर मरे या कन्या उन्हे तो अपने तमाशे से मतलब होता है।भारत पर भी हथियारों की क्रय प्रतिस्पर्धा प्रत्यक्ष प्रभावी होगी,चीन और पाकिस्तान से युद्ध की शंकाएं अतिरिक्त प्रभावित करती हैं।थोड़ा सुखद यह है कि भारत ने आत्म निर्भरता के संकल्प को रक्षा क्षेत्र में भी लागू किया है,भारत का सैन्य उद्योग निरन्तर मजबूत हो रहा है।"सर्वे भवन्तु सुखिन:"सरोकारति "वसुधैव कुटुंबकम " निहित भारत देश राम,कृष्ण,बुद्ध, महर्षियों और गांधी,विवेकानंद,भगत,शेखर की प्रणम्य धरा है।सही मायने में भारत एक आदर्श और जिम्मेदार संप्रभु राष्ट्र है,विश्व व्यापी सभ्यता/ संस्कृति विश्व शांति की समर्थक है। युद्ध और बुद्ध से संतुलित भारत की विश्व स्तरीय कल्याणकारी भूमिका सुनिश्चित है,इस सुनिश्चितता से विश्व लाभान्वित हो।
।।ॐ शांति जल शांति,थल शांति,नभ शांति,आयुध शांति,युद्ध शांति रूस शांति यूक्रेन शांति विश्व शांति ॐ।।अब युद्ध न हो इसकी जिम्मेदारी द्विपक्षीय हो गई है,स्वदेश के लिए विश्व के लिए ज़ेलेंस्की को भी बातचीत का रास्ता अपनाना चाहिए,किसी तटस्थ और सक्षम को मध्यस्थ बनाना चाहिए,पुतिन का भी बड़प्पन जगजाहिर होना चाहिए इस संबंध में ज़ेलेंस्की चाहें तो भारत देश से आग्रह कर सकते हैं,पुतिन भी भारत के इस नेक काम के लिए साधुवाद ज्ञापित कर सकते हैं।खैर जहां भी हो जैसे हो बातचीत होनी चाहिए जंग रूकनी चाहिए। युद्ध भाव त्याग और बुद्ध भाव आग्रह की विषय वस्तु है।
नरेन्द्र नाथ त्रिपाठी
रायबरेली रोड,लखनऊ
उत्तर प्रदेश,भारत
नमो बुद्धाय... बुध अर्थात अयुद्ध...
ReplyDeleteजी धन्यवाद 🙏चूंकि अप्रत्याशित युद्ध से न केवल मानवता कलंकित होती है बल्कि जान और जहान की अपूर्णनीय क्षति भी होती है,निर्दोषों और मासूमों के कत्लेआम से ह्रदय सिहर उठता मन विचलित हो जाता है,वैश्विक आर्थिक संकट से देश दुनिया ग्रसित होती है।
Deleteप्रतिकूल से प्रतिकूल परिस्थिति में भी धर्मयुत रहना ही श्रेयस्कर है और प्रत्येक स्थिति में धैर्य के साथ कर्तव्य पालन ही धर्म है । बुद्ध का लक्षण तो कम से कम ऐसा ही है और युद्ध अर्थात् विवाद मतलब दो में से एक का चुनाव, लेकिन एक स्थिति ऐसी भी है जिसे आ-वाद कहते हैं अर्थात् यदि युद्ध से शुभ फलित होता है तो स्वागत और यदि और यदि शांति से शुभ फलित हो तो स्वागत।जिससे भी मंगलयात्रा गतिमान हो।हमने तो वसुधैव कुटुंबकम् का सपना देखा है। सबसो हित निष्काम मति। मनुष्य को स्वयं को सर्व तंत्र स्वतंत्र मानकर अनर्गलता की ओर बढ़ने और उससे उत्पन्न विसंगतियों और बिडंबनाओ का संस्पर्श किए बिना गति करना क्या उचित है?? यद्यपि वो स्वतंत्र है परन्तु स्वतंत्रता माने क्या जिससे दूसरे की स्वतंत्रता न बाधित हो ।
ReplyDeleteयुद्ध के चुनाव के लिए बुद्ध होना पड़ेगा तभी शुभता का प्रदुर्भाव होगा।
Rajesh Singh Chauhan जी भाई विश्लेषणात्मक टिप्पणी अध्ययनीय है,युद्ध अप्रियता मानवता की परिचायक है,कालखंड में वेद -पुराण वर्णित युद्ध तर्क संगत नहीं न्यायसंगत होते थे,युद्ध करने से अधिक युक्तियां युद्ध टालने में लग जाया करती थी,हितों की हानि नहीं धर्म की हानि युद्ध का कारण होती थी ,और उस महा लड़ाई का 'धर्म युद्ध' से संबोधन उसकी सार्थकता और महत्ता की स्वमेव पुष्टि है गौरवान्वित और प्रेरक इतिहास बनकर ।आज वैश्विक स्तर पर परस्पर निर्भरता और व्याप्त संवैधानिक व्यवस्था में कबीलाई संस्कृति का कोई स्थान ही नहीं।लेकिन संप्रभुता पर आंच आए तो लाने वाले को ठंढ़ा करना जरूरी है,फिर भी न माने तो उसी आंच में जला देना 'धर्म युद्ध ' जरूर सिद्ध हो सकता है।
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