"आरक्षण का आकर्षण"

देश भारत में लगभग 70% जनसंख्या  आरक्षण की लाभार्थी है।तो यक्ष प्रश्न यह है कि आखिरकार 70 वर्षों के इस आरक्षण वाले विकास को लकवा क्यों मार गया।आसमान खा गया या धरती निगल गयी आरक्षण वाले विकास को।मत भूलें गरीब,गरीब होता है शोषित-पीड़ित,शोषित-पीड़ित होता है इनकी कोई जाति नही होती।वास्तव में आज जाति दो ही शेष हैं एक अमीर एक गरीब।गौरतलब हो विकास का रथ जातिगत आरक्षण की आपाधापी से तो हांका ही नही जा सकता,विगत सात दशक ज्वलंत उदाहरण हैं पुष्टि भी|परिस्थितियां कल्याणकारी वातावरण के लिए क्रान्तिकारी परिवर्तन चाहती हैं, श्रीगणेश भी जनसामान्य को ही करना है 🙏

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