"शैक्षिक प्रदूषण बनाम जेएनयू"

शिक्षाविदों, दार्शनिकों और महापुरूषों के द्वारा'शिक्षा' की परिभाषाएं पढ़ी गई सुनी गई, लेकिन देश के सुप्रसिद्ध शिक्षण संस्थान 'जेएनयू' से जो अकल्पनीय परिभाषाएं निकल कर आ रही हैं वो न तो कभी पढ़ी गई होंगी और न ही सुनी गई होंगी|चन्द मुठ्ठी भर लोगों द्वारा संस्थान का शैक्षिक वातावरण प्रदूषित किया जा रहा है, दुर्भाग्यपूर्ण विरोधाभास यह है कि जिन कंधों पर देश की सुख-शांति-समृद्धि की जिम्मेवारी समझी जाती है वहीं कंधे देश की एकता-अंखडता-संप्रुभता की अर्थी का मनोरथ पाल रहे हैं| यद्यपि यह सब राजनीति से प्रेरित भी हो सकता है लेकिन तब मामला देशहित के लिहाज अधिकाधिक घातक और गंभीर हो जाता है| सोचनीय और चिंतनीय यह है कि जो छात्र श्रृंखला और राजनीति भारत के टुकड़े-टुकड़े का मंसूबा रखती हो, आंतकवादी को नायक मानती हो जो आतंक की बरसी का जश्न मनाती हो,जो हमारे प्रणम्य प्रतीकों का तिरस्कार करती हो! उससे राष्ट्र हित की जरा सी भी उम्मीद क्या आत्मघाती नहीं होगी?
       ऐसी छात्र श्रृंखला की बेशर्मी पर हैरानी होती है कि हम देश वासियों के कर से लगभग चार लाख(४०००००/) प्रतिवर्ष प्रतिछात्र सरकार के कर कमलों से इन पर व्यय किया जाता है| इस कलुषित अभिव्यक्ति की आजादी पर अंकुश लगाना राष्ट्र धर्म ही है,और यह धर्म निर्वाहन संवैधानिक पदासीन माननीयों की जिम्मेवारी है |हमारी नैतिक जिम्मेवारी यह बनती है कि हम भारतीय सभी सरकार को राष्ट्र धर्म याद दिलाते रहें और राष्ट्र हित में कठोर निर्णय मय दंड विधान के लिए राजनैतिक इच्छाशक्ति जगाते रहें|
           

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