#तब्लीगी जमात का सच

तब्लीग शब्द मिशन के समानांतर है,उद्देश्यपूर्ण व्यवस्थित कार्य योजना क्रियान्वित करना मिशन या तब्लीग है,और मशगूल लोग मिशनरी या तब्लीगीजमात का मतलब समूह, झुंड या कतार से है।तब्लीगी जमात ऐसे लोगों का झुंड होता है जो अपने ढंग से अल्ला-ताला के रसूल और मनगढ़ंत इस्लाम का प्रचार करते हैं। मरकज मतलब एक ख्याल विशेष वाले व्यक्तियों को इकट्ठा होने की जगह या इमारत।मरकज से देश के तमाम प्रदेशों और शहरों को के लिए लगभग आठ से दस लोगों की जमात निकलती है,ये तब्लीगी जमाती घर-घर जाकर संबंधित लोगों को नजदीकी मस्जिद में इकट्ठा होने की अपील करते हैं। गौरतलब है तब्लीगी जमात का स्थापना उद्देश्य शांतिपूर्ण ढंग से खुदा पाक का  इंसानियत के वास्ते संदेश और जरूरी इल्म लोगों के बीच पहुंचाना बताया जाता है, जिसका गठन 1926-1927 में निजामुद्दीन के मौलाना इलियास कांधलवी ने कटृर इरादों के साथ किया था।यह कटृर सुन्नी इस्लामी धर्म प्रचार आन्दोलन है जबकि कट्टरता किसी भी धर्म विशेष के लिए उचित नहीं है चूंकि कटृरता धर्मांध कर देती है,और वैमनस्ता की पोषक भी हो सकती है, हां यह उल्लेख कर देना बहुत जरूरी है कि धर्मपरायणता और धर्मानुकूल आचरण सौभाग्य की विषयवस्तु है,धर्मानुराग जनित धर्मानुयायी होना व्यक्तिगत विषय है, ऐतिहासिक अध्ययन स्पष्ट करता है कि खतरे की आशंका से मुसलमानों को अपने इस्लामी मजहब में यकीन बनाए रखने के लिए और विस्तार के मंसूबे से मुल्क ही नहीं बाहर के लोगों को भी शामिल करने की कोशिशें जारी की गयीं। तब्लीगी जमात की कटृरता गंगा-जमुनी  तहजीब पर यकीन नहीं करती,गैर मुस्लिमों को काफिर समझकर नफरत की हिदायत देती है।गैर इस्लामी चीजें छोड़ने का प्रचार करती है,इनका रहन-सहन, खान-पान, लिबास बोली-भाषा और तौर -तरीके इन्हे अलग पहचान देती है। इनके ख्यालों से इत्तफाक न रखने वाले भाई-चारे की मिशाल वाले, मिल-जुलकर रहने वाले अमन पसंद नेक दिल मुस्लिम भाई-बहन भी इनको तब तक नहीं भाते जब तक तब्लीग -ऐ जमात के कट्टर अनुयायी न हो जाएं।शरीयत -ऐ पाबंद बनाना और मन मुताबिक इस्लामिक कायदे-कानून तय करना,गैर मुस्लिमों से दिली दूरी इजाद करना मिशन -ऐ जमात है। देश-काल -परिस्थिति के अनुसार इनकी तथाकथित शांति जाहिर होती है सौहार्द और सद्भाव परिभाषित होता है, जैसा कि आजकल हो रहा है।स्वामी श्रद्धानंद की हत्या भी प्रासंगिक है यहां पर,याद यह भी दिलाना है अब से पहले,पहली बार श्रद्धेय स्वामी जी की हत्या के बाद तब्लीगी जमात सुर्खियों में आया था।नि:संदेह मातृभूमि स्नेह, मानवता,और तमाम जरुरी कल्याणकारी कामों से ऊपर इनका गढ़ा इस्लाम ही इनके लिए श्रेष्ठ है। कारनामों के चलते वैश्विक पटल पर भी जमात की छवि कत‌ई अच्छी नहीं है।
         वैश्विक महामारी बने कोरोना संक्रंमण काल में इसी निजामुद्दीन मरकज  ने जमात को जाहिलियत का जामा पहनाकर मंसूबों को नापाक करार दिया है। लॉकडाउन का उलंघन करके शासनादेश और सरकारी फरमानों को ताख पर रखकर आयोजित जलसे के नुक़सान से से जन-गण-मन को आहत कर दिया, जमात में न केवल भारतीय बल्कि पर्यटन बीजे पर आए विदेशी जमातियों को भी शामिल करने का अक्षम्य अपराध किया।पर्यटन बीजा पर तब्लीगी कार्य धोखा है राष्ट्रहित में।जमातियों के अनवरत अपराध,अमानवीय कारनामे और पाकिस्तानी तब्बलीगी जमात के सुर में सुर वाली एकरूपता विचारणीय ही नहीं चिंतनीय भी है।कोरोना पीड़ितों के परीक्षण में आमिर मौलाना साद का असहयोग और जहर बुझी जुबान से अनापेक्षित,अप्रिय, बगावती बयान पर अन्य मौलाओं और कौमी बड़े चेहरों की, राजनैतिक दलों की चुप्पी मौन सहमति की परिचायक है। हास्यास्पद तो ' अल्पसंख्यक आयोग'की वह चिट्ठी है जो दिल्ली सरकार को लिखी गयी जिसमें कहा गया कि "रोजाना के बुलेटिन में निजामुद्दीन मरकज का जिक्र न किया जाए,इससे ' इस्लामीफोबिया ' के एजेंडे को बढ़ावा मिलता है" इतना ही नहीं आयोग के अध्यक्ष ने ये भी कहा कि "अविवेकी वर्गीकरण देश में मुसलमानों पर हमले का एक औजार है"।वहीं चीनी बोरे से दबे ' डब्लूएच‌ओ ' के आपातकालीन निदेशक माइक रयान हिदायत देते हैं कि "कोरोना वायरस महामारी को धर्म के चश्में न देखा जाए"।इन सबसे पूछा जाए ये कर क्या रहे हैं? मतलब उल्टा चोर कोतवाल को डांटे।
           यक्ष प्रश्न यह है कि ऐसी किसी जमात की जरूरत है क्या हमें हमारे देश में?यह प्रश्न  गैर मुस्लिमों से अधिक प्रबुद्ध भारतीय मुस्लिम बिरादरी से है।
 समाधान :  एक भारत नेक भारत श्रेष्ठ भारत के नवनिर्माण में प्रथम दृष्टया राष्ट्र धर्म और मानव धर्म हमारी प्राथमिकता में होना चाहिए, हमें हमारे गौरवान्वित इतिहास और पूर्वजों के त्याग सदैव ध्यान रखना होगा,खतरों से सचेत रहना होगा मय निवारण की जागरुकता सहित, प्रकृति और पर्यावरण के प्रति आदर और प्रकति सम्मत जीवनयापन करना होगा,असीमित भोग-विलासिता पर अंकुश लगाना होगा,संघे शक्ति के मर्म को समझकर चरितार्थ करना होगा।  मजहबी और जातीय संकीर्णताओं की तिलांजलि करनी होगी,श्रेष्ठ चिंतन सरोकारित वतन के वास्ते कल्याण और उन्नति के मार्ग प्रशस्त करने होंगे।संक्रमण काल की वैश्विक महामारी के संकट में जारी दिशा-निर्देशों का पालन करना और करवाना सभी की परमावश्यक जिम्मेवारी है। चिकित्सा-स्वच्छता-सुरक्षा और किसी भी तरह की सेवा में रत कोरोना युद्ध के पराक्रमी योद्धा है इनके प्रति निष्ठा और आदर भाव ही हमारा धर्म होना चाहिये। इन पर किसी भी तरह का आघात एवं जारी दिशा-निर्देशों के प्रतिकार पर मय दंड विधान राष्ट्र द्रोह दर्ज होना चाहिए।

Comments

  1. जमात का मतलब झुंड अथवा भीड़ अर्थात् जिसका न कोई दीन होता है न ईमान और मरकज़ मतलब इमारत जहाँ तबलीगी इकट्ठा होते है तो इकट्ठा हो कर ,नापक़ इरादों का विस्फोट करते हैं और अपने विध्वंसक कारनामों से देश में विद्रोह का माहौल पैदा करते हैं।
    जब वैश्विक महामारी सभी को अपने आग़ोश में लेने को है तब संगठित हो कर उसका मुक़ाबला करने के साथ साथ आस्तीन में पल रहें साँपों का भी उपाय करना पड़ रहा है , हम अपनी प्रांजल संस्कृति का दामन थामकर न केवल इन सांपों का इलाज कर रहे अपितु उनका पोषण भी कर रहे हैं। प्रश्न यह है की क्या यही मानवता है और यदि यही मानवता है यह पाठ तबलीगियों को भी पढ़ना चाहिए ।
    जब राष्ट्र की एकजुटता आहत हो तब हमारा व्यक्तित्व यह सम्पादित करे की हम सिर्फ़ व्यक्ति नही अपितु सम्पूर्ण राष्ट्र की अभिव्यक्ति हैं। जिस राष्ट्र के नेतृत्व में पराक्रम और विनयशीलता और दूरदर्शिता होती है उसे कोई बाधा रोक नहीं सकती , रही बात इन तबलीगी जमात की विद्रूपता की तो वह अंकुश लगाना ही देश हित में है । जातीय संकीर्णता से ऊपर उठ कर श्रेष्ठ मनन एवं चिंतन से बाधा पार करनी होगी।समसामयिक परिस्थितियों में जो दिशा निर्देश है उनका पालन और उल्लंघन पर राष्ट्र द्रोह का दंड विधि सम्मत और उचित होगा।
    एक उत्तम राष्ट्र की अभूतपूर्व संकल्पना के साथ —————

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