गांधी अपमान बनाम दंड विधान

नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः । न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः ॥पूज्य गांधी जी की आत्मा वैचारिक रुप से विचरण कर रही है देश-दुनिया में जीवन दर्शन रुप में विद्यमान है आपका विराट व्यक्तित्व,विराटता का अनुभव संकीर्णता से संभव नहीं है,त्याग-तपस्या,साधना,श्रेष्ठ चिंतन,प्राणि मात्र के पैरोकार,प्रकृति प्रेमी, हठधर्मिता और सादगी का नाम है 'मोहन दास करमचंद गांधी'|गांधी से प्रेम करने के लिए जितना जरुरी है गांधी को जानना उससे भी अधिक जरुरी है नफरत की वजह खोजना|गांधी एक व्यक्ति नहीं वरन प्रणम्य अनुकरणीय व्यक्तित्व हैं,ऐसे व्यक्तित्व का अपमान करने की नादानी सूरज पर थूकने जैसी ओछी हरकत मात्र है,आप किसी के कुछ विचारों से असहमत हो सकते हैं कुछ प्रयोगों से असंतुष्ट हो सकते हैं लेकिन उसकी विराटता को सिरे से खारिज नहीं कर सकते|उसके अतुलनीय योगदान को कल्याणकारी सुकृत्यों को भूलाना तो बहुत दूर नजरांदाज भी नहीं कर सकते|हत्यारे गोडसे की महिमामंडना करना आपत्तिजनक ही नहीं अपराध भी है,कम से कम संवैधानिक पदासीन यह अपराध तो कतई स्वीकार्य नहीं होना चाहिए बल्कि ऐसी कलुषित अभिव्यक्ति आजादी जो राष्ट्र विरोधी हो,प्रतीकों पर प्रहार हो, जिसमें महापुरूषों का तिरस्कार हो उस पर अंकुश का दंड विधान तत्काल होना समयाग्रहीत है|

      तथाकथित साध्वी और सांसद महोदया प्रज्ञा जी और तमाम पैरोकार से प्रश्न यह है कि, वैचारिक असहमति हत्या का अधिकार देती है क्या? हम आपके विचारों और कृत्यों से असहमत हैं तो करता आप हमारी हत्या कर देंगे ? असंतुष्ट होने पर उसकी हत्या कर देना दंडनीय अपराध ही नहीं अमानवीय भी है|लोकतंत्र स्थापित हो चुका था,गोडसे को अपनी बात कहने का विधिसम्मत लड़ने का अधिकार था,मत भूले कोई गोडसे बनना बहुत आसान है सामान्य है लेकिन गांधी बनना असमान्य और अद्भुत है,गोडसे बनने के लिए एक लम्हा काफी है गांधी बनने के लिए एक उम्र भी कम है| हत्यारे गोडसे के समर्थकों को सोचना चाहिए कि बढ़ते समय के साथ गांधी और उनका दर्शन प्रभावी और प्रासंगिक क्यों हो रहा है?
           चूक! गलती हो सकती है लेकिन कुछ गलतियां अक्षम्य होती है और पुनरावृत्ति आदत बन जाती है,साध्वी प्रज्ञा और पैरोकार तमाम की आदत बन चुकी है गांधी का अपमान और हत्यारे गोडसे का महिमा मंडन करना, शीर्ष संवैधानिक पदासीन सभी माननीयों की चुप्पी मौन सहमति की परिचायक सिद्ध होगी, नितांत आवश्यकता है ऐसे क्रिया-कलापों के प्रति दंड विधान की|
                    नरेन्द्र नाथ त्रिपाठी

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