कनिका बनाम विष कन्या
राज तंत्र का इतिहास और वैदिक साहित्य विष कन्याओं से आच्छादित है,षणयंत्र की पोषक सामग्री से परवरिश हुआ करती थी बला की खूबसूरत कन्याओं को बचपन से ही तैयार किया जाता था शत्रुओं का छलपूर्वक जान-माल हानि के लिए,विष की अल्प मात्रा और विषैली वनस्पति एवं विषैले जीव-जंतुओं से अभ्यस्त किया जाता था।विशेष रुप से संगीत एवं नृत्य की आकर्षक कलाओं में पारंगत होती थी यह जहर से बुझी मदमस्त यौवन की मल्लिकाएं,विष कन्याएं।छल विद्या का प्रशिक्षण पूर्ण करने के बाद इनको देश-काल-परिस्थिति के अनुसार भेज दिया जाता था शत्रु मंडली में भोग-विलास की खलबली में।
समय के साथ इनका कलेवर जरूर बदला है लेकिन कला नहीं, वर्तमान समय में तकनीक के दौर में शिकार स्वयं को इनके आस-पास रहकर स्वयं को धन्य समझता है और रसूख को सार्थक। राजनीति में इनकी महत्त्वपूर्ण भूमिकाएं भी वर्णनीय हैं और यह हर युग में हर समय में रहती हैं,आज भी हैं। गुप्त सूचनाएं प्राप्त करने के लिए मंसूबे को अंजाम देने के लिए सरकारी मशीनरी,कार्यपालिका और न्यायपालिका भी इनकी जद में हो सकती है।
रुप और मंत्र मुग्ध सुरों की मल्लिका कनिका कपूर का कारनामा उन्हे विष कन्या की मानक उपाधि से विभूषित करता है।उनके अति अनुरागियों की श्रृंखला में महत्वपूर्ण पदों पर विराजमान महिमा मंडित माननीयों का होना आश्चर्यजनक नहीं है। प्रधानमंत्री जी का आग्रह, जागरुकता की जग -जाहिर परिचर्चा, शासनादेश को धता करना,सुरक्षा एजंसियों को चकमा देना,उसके विष कन्या रुप को ही तो परिभाषित करते हैं।मतलब,रुप,यौवन,गायन,नृत्य और छल इतना ही नहीं संक्रमणकाल में आपत्तिजनक मस्तियां लुटाना,भीड़ इकट्ठा करना ही नहीं बल्कि बाकायदा लोगों को स्पर्श करना मिलना-मिलाना प्रायोजित नहीं तो क्या है?
Comments
Post a Comment