#भारत की #करोना से लड़ाई में जाहिल जमात की भूमिका

जैसा कि हमने अपने इससे पहले ब्लाग/लेख में बतलाने की चेष्टा की थी कि कोरोना से युद्ध करने में हमें वाह्य शक्तियों से अधिक आंतरिक शक्तियों से लड़ना होगा।जाहिल जमात ने अपने नीचतम स्तर से अघोषित युद्ध की दस्तक का दुस्साहस किया है,उनके मंसूबे कितने सफल होंगे,उनका हश्र क्या होगा यह अलग बात है।हम न भूलें यह लड़ाई साहसिक कम संयमित और संवेदनशील अधिक है,मतलब इस लड़ाई में देश के विरुद्ध दुश्मन लाचार,बेबस,निरीह दीन,हीन, तन-मन से जर्जर दुर्बल अदना सा व्यक्ति  भी महायोद्धा की भूमिका  में हो सकता है और इनके सरपस्तों की पहचान महाचुनौती सिद्ध होगी।
         महामारी कोरोना से भारत की लड़ाई में पहली बाधा आई पलायन इसे हम प्रायोजित पलायन कहना समीचीन है ।खैर व्यवस्थाओं ने उसे संभाल लिया,लेकिन पलायन वाले राज्यों की नाकामी और राज्य प्रमुखों की तुच्छ मानसिकता को जरूर उजागर कर दिया,इस सबके बावजूद भी  बहुत अच्छे से लड़ रहे भारत की भव्यता कुछ आस्तीन के सांपों को अच्छी न लगी संभवतः उनके सरपरस्तों ने उन्हें फरमान जारी किया होगा "कि जग -जाहिर जाहिलियत को  हथियार बनाकर कोरोना के खिलाफ भारत के शंखनाद को कमजोर करो,उस पर आघात करो"। फिर क्या जाहिल जमात रुपी कोरोना आ गया सामने।
          किसी महामारी से लड़ाई असमान्य होती है क्योंकि दुश्मन अमूर्त होता है,और तब जब दुश्मन रुपी वायरस छूने से खांसने से थूकने से आक्रमण कर महामारी की चपेट में ले ले तो परिस्थितियों की भयावहता और दुष्परिणामों की कल्पना मात्र किसी व्यक्ति,समाज और राष्ट्र को कितना विचलित कर सकती है?यह अनुत्तरित प्रश्न है।यह वह समय होता है जब हम एक तरफ ग्रसित लोगों की जिंदगी बचाने में अपनी क्षमता से लड़ रहे होते हैं तो दूसरी ओर संक्रमण को रोकने से,इतना ही नहीं परिस्थिति जन्य समस्याओं से तीसरी लड़ाई भी लड़ रहे होते हैं। मतलब यह युद्ध क‌ई स्तरीय हो चुका होता है। प्राथमिकता में भरण-पोषण-रसद और आवश्यक जीविकोपार्जन संसाधनों की सुचारूता भी बड़ी चुनौती सिद्ध होती है।विविध आयामी सुरक्षा को सुरक्षित रखना भी एक अलग जिम्मेवारी तय करती है।आज एक देश के रूप में भारत उपरोक्त उल्लेखित सभी परिस्थितियों से लड़ रहा है,मतलब हम लड़ रहे हैं,भारतवासी लड़ रहे हैं।मुसीबत के इस आपातकाल में जाहिल दुश्मन जमात ने मुश्किलें बढ़ाकर तमाम कोशिशों पर पानी फेरने का राष्ट्रद्रोह से अधिक का दुस्साहस किया है,मानवता को खतरे में डालकर। निजामुद्दीन में आयोजित तब्लीगी जमात ने न केवल लाकडाउन का उलंघन किया बल्कि दिलो-दिमाग में और इमारत में फैली उस विकट गंदगी का परिचय दिया कि लोग सन्न रह गए। गौरतलब है कि जाहिल जमात के  संक्रमण ग्रसित लोग देश के विभिन्न क्षेत्रों में संक्रमण फैलाकर मानव बम से अधिक खतरनाक सिद्ध हो रहे हैं। इनका स्वास्थ्य परीक्षण में सहयोग न करना और इनकी बेहूदगी की हदें सुरक्षाकर्मियों से लड़ना,स्वास्थ्य कर्मचारियों से लड़ने तक ही सीमित नहीं बल्कि उन पर थूकना और महिला चिकित्सों के साथ अश्लीलता इनके दिमाकी फितूर और नापाक मंसूबों की बानगी भर हैं।इससे सहज ही सुस्पष्ट होता है कि भारत के प्रति इनके जेहन में जहर कितना भरा है,जिनकी पोषक राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय संस्थाएं और कुछ विशेष शक्तियां हैं। अस्तु  जन-गण की भी जिम्मेवारी न केवल स्वयं जारी दिशा-निर्देशों के पालन तक सीमित है बल्कि संदिग्ध गतिविधियों से शासन-प्रशासन और सरकारों को सूचित भी करते रहना है।सरकारों ने बेशक मय चिकित्सा लोगों की सुविधा और सहूलियत के लिए युद्ध स्तर पर तमाम इंतजाम किए हैं और लगातार कर रही हैं लेकिन अपेक्षा यह है कि संदिग्ध लोगों की परीक्षण प्रक्रिया को गति प्रदान करें और आपत्तिजनक कारनामों के दोषियों के प्रति सख्त कार्रवाई बतौर नज़ीर करें।हमें यह भी समझना होगा कि जेहादी सोंच कभी आबादी की शुभचिंतक नहीं  हो सकती,जबकि खुद की आबादी को केवल और केवल जेहाद के लिए  बढ़ाना इनका मकसद ही रहा है। कोरोना की लड़ाई में  भारत का कम से कम नुकसान के साथ जीतना सुनिश्चित है विश्वव्यापी विजय घोष के साथ लेकिन इतिहास में जाहिल जमात और मौकापरस्त लोगों के कारनामों पर पीढ़ियां जरूर थूंकती रहेंगी।                 _______________________आपका ही                          _______________________नरेन्द्र नाथ त्रिपाठी

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