#पालघर संतजनो की क्रूर हत्याओं का सच?
किसी झुंड या भीड़ द्वारा हत्या की साज़िश करना,लक्ष्य पर प्राणघातक हमले करना, वारदात को अंजाम देना माब लिंचिग कहलाता है। दुर्भाग्यवश शब्द MOB LYNCHING (माब लिंचिग) बहुप्रचलित हो रहा है तथाकथित अत्याधुनिक सभ्य समाज में,इस प्रायोजित दुष्कर्म में संविधान सम्मत कानून व्यवस्था को ससम्मान ताख पर रख दिया जाता है,कभी -कभी तो कानून के मजबूत कंधे ही झुककर धन्यानुभूतिक होते हैं।इसका विभत्स रुप अति उत्साहित होकर लक्ष्य को इतना मारता है कि मृत्यु हो जाती है, चूंकि कानून की उपहासिक कमजोरी इनके जेहन में यह होती है कि 'भीड़ की कोई शक्ल नहीं होती' लेकिन सच यह भी है कि भीड़ की शक्ल में पिशाची-शैतानी सोंच होती है।यह भीड़ को दो हिस्सों में बांटती है और ये हिस्से बाकायदा अपने-अपने मजहबी या जातीय उन्मादी लिबास में खड़ी होती है या खड़ी कर दी जाती है।आसानी से समझा जा सकता है कि इस लज्जित कायर दुष्कर्म में घटना स्थल,पात्र और परिस्थितियां सब पूर्व नियोजित होती हैं,माब लिंचिग की महती कृपा इतने से समझी जा सकती है कि कभी-कभी इच्छित हत्या या हत्याओं को माब लिंचिग की छद्म काया से विभूषित कर दिया जाता है।
ऐसी ही एक हत्यारी साजिश को पालघर महाराष्ट्र में सफल किया गया है,कांदीवली स्थित आश्रम में रहने वाले जूना अखाड़े के दो संत किराए की वैन से किसी अंत्येष्टि संस्कार के लिए सूरत जा रहे थे, लेकिन उनको क्या पता था कि कुछ नर पिशाचों को उनकी सूरत पसंद नहीं और वो लोग कुछ ऐसा करने जा रहे हैं कि फिर कभी इन संतों और उनके चालक की सूरत यह समाज नहीं देख पाएगा।ये बर्बर चश्मदीद हत्याएं सरकारों से, राजनैतिक दलों से,समाज सेवियों से, साहित्यकारों से एवं पुरस्कार वापसी लब्ध प्रतिष्ठित बड़े चेहरों से आक्रोशित भाव से सवाल करती हैं न केवल तीन हत्याओं पर बल्कि शांति संदेश के वाहक संत समाज के प्रतिनिधियों की बर्बर हत्याओं पर भी। दुर्भाग्यपूर्ण हत्याओं के पहलुओं का अध्ययन स्पष्ट करता है कि यह विश्वास की भी हत्या है, कानून व्यवस्था की भी हत्या है, इंसानियत की भी हत्या है,सोचनीय यह है कि लॉकडाउन के दौर में इस भीड़ के मायने क्या हैं?मौके पर पुलिस के आने का मतलब क्या है?सुरक्षा की प्रर्याय पुलिस असहाय क्यो? प्राणघातक मार से पीड़ित निर्दोष संतों और उनके चालक को पुलिस के मजबूत हाथों से मौत के क्रूर हाथों के हवाले क्यों किया गया?
गौरतलब है कि हत्या स्थल और वारदात क्षेत्र वामपंथी विचारों की पोषक नामुराद राजनीति का गढ़ भी है,और मिशनरी मशीनरियां भी यहां सक्रिय हैं।इस क्षेत्र विशेष में इससे पहले भी ऐसी जानलेवा वारदातें कुघटित की जाती रही हैं,अस्तु ध्यान देने योग्य यह भी है कि स्थानीय प्रशासन सहित मौजूदा सरकारों ने इस संबंध में किया क्या?जाहिर सी बात है या तो कुछ किया नहीं या फिर किया तो नाकाफी था पुनरावृत्ति रोकने के लिए।दो साधुओं सहित तीन विभत्स हत्याओ के दोषी सभी सरकारी और गैर सरकारी तंत्र को आक्रोषित जन-गण-मन कभी माफ नहीं करेगा,निर्बल,असहाय, निर्दोष संतों और उनके चालक बेचारे के साथ हत्यारों का खूनी खेल मय पुलिस बल को जन-गण ने देखा है। संवेदनहीन तमाशबीन भीड़ और पुलिस बल का हतप्रभ करने वाला चरित्र कितने भी तर्क गढ़ ले लेकिन अपनी आत्माओं और मृतप्राय जमीर की धिक्कृत आवाज को जीवन भर सुनना ही पड़ेगा, स्थानीय राज्य सरकार से वीरभूमि के प्रश्न उनुत्तरित ही रहेंगे।हत्याओं की साज़िश के अनावरण हेतु, सरपरस्तों को बेनकाब करने के लिए राज्य सरकार को कतई नैतिक अधिकार नहीं है कि वह राज्य स्तरीय जांच करवाए।क्षुब्ध शोक संतृप्त जन-गण-मन की गृह मंत्रालय भारत सरकार से और स्वत: संज्ञान के सारथी माननीय न्यायालय से अपेक्षाएं सूचित होनी ही चाहिए ताकि पुण्य आत्माओं की श्रद्धांजलि औपचारिकता मात्र न रह जाए।__________
'तन सनातन,मन सनातन,जीवन सनातन और वतन सनातन'🙏🇮🇳🙏
यह सियासी विष,यह चारण-वंदन उपजा करूण-क्रन्दन,क्यों रौंदा जा रहा जन-गण-मन ?माब लिंचिंग नाम की बला को समूल नष्ट करना हम सबकी नैतिक जिम्मेवारी है राष्ट्रहित में।
आक्रोशार्थ
नरेन्द्र नाथ त्रिपाठी
पालघर संतजनों की हत्या , जिसमें एक की उम्र ७० साल थी यहाँ यह बताना इसलिये आवश्यक है कि जो स्वयं ही उम्र के आख़िरी पड़ाव पर है क्या उसकी ऐसी नृशंस हत्या भी की जा सकती है और साथ में दो और बेक़सूर, सरासर नियोजित तरीक़ा था अन्यथा पुलिस उन्हें इस तरह भीड़ के बीच न छोड़ देती। तथाकथित रूप से वो आबादी आदिवासियों की है किंतु वहाँ हिंदू और मुसलमान दोनों रहते हैं और निश्चित हिंदू इतना घिनौना नहीं हो सकता , सब कुछ प्रायोजित था और यदि नही था तो १२ १४ पुलिस वहाँ मूक बन कर क्यों खड़ी रही ? स्पष्ट है घटना स्थल पर दुष्कर्म में लिप्त पात्र और परिस्थिति पूर्व नियोजित थी।
ReplyDeleteएक बात और ध्यनाकर्षण की है कि घृणित हत्या का क्षेत्र वामपंथी विचारों की पोषणा का केंद्र है अत: स्थानीय प्रशासन और मौजूदा सरकार पर प्रश्नचिंह है कि इंतज़ाम नाकाफ़ी थे। वीभत्स हत्या की दोषी सरकार और उसका तंत्र आक्रोशित जनसमान्य की माफ़ी का हक़दार नही । साज़िश के अनावरण के लिए केंद्र सरकार की पहल और पुलिस की संदिग्ध गतिविधि की उच्चस्तरीय जाँच आवश्यक है अन्यथा मृत आत्माओं का दारुण क्रंदन मनुष्यजाति का अभिशाप बन जाएगा और पुनरावर्ति उसका परिणाम।
साभार।