"जान भी जहान भी "
महामारी जनित *लॉकडाउन* निहित कल्याणकारी मनोरथ को पूर्ण कर रहा है,परिणाम स्वरुप स्थितियां अनियंत्रित नहीं हो पाईं। किसी भी देश के लिए दीर्घकालिक लॉकडाउन असाध्य है,भारत जैसे अति विशाल के लिए लॉकडाउन की समयावधि से उपजे *अर्थ संकट* का व्यापक,जन-जन पर प्रभावी होना स्वाभाविक होगा,यह प्रतिदिन अपनी *भारी-भरकम कीमत* वसूल रहा है। इसलिए जरुरी है कृषि कार्यों के साथ व्यवसायिक गतिविधियां भी शुरू हों,समझना जरूरी है कि संक्रमणकालीन सूरतेहाल फिलहाल बेहाल है, सामान्य स्थिति बहाल के कयाश फिक्रमंद हैं।
अस्तु जीवन बचाने की कोशिशों के के बीच जीविकोपार्जन के संसाधनों को धीरे-धीरे ही सही गतिमान करना *जान* *भी जहान* *भी* को परिभाषित करता है।जिसका जिक्र यशस्वी नेतृत्व ने भी किया है। ऐसे में यह बहुत जरुरी हो जाता है कि हम जारी दिशा-निर्देशों का पालन स्वयं सुनिश्चित करें। मतलब *"एक तरफ कुआं दूसरी तरफ खांई "* की यथास्थिति में हमें दोनों से बचकर चलना है,काम आसान नहीं है तो मुश्किल भी नहीं।हम न भूलें जरा सी लापरवाही की कीमत कितनी भारी हो सकती है? लिहाजा लॉकडाउन में मिलने वाली आवश्यक छूट का सदुपयोग करने की जिम्मेवारी जन-गण की अधिक है, प्रशासनिक प्रयास अपनी जगह। *सामाजिक दूरी व्रत* निष्ठा और संकल्पित भाव से अब हमारा *सामाजिक चरित्र* स्वरूप परिलक्षित होना चाहिए, *स्वचछता* के प्रति आदर और जीवनशैली में परिवर्तन भी समयाग्रहीत हैं। लॉकडाउन की अनुभूति कुछ ऐसी है "मैं ठहरा रहा जमीं चलने लगीं,धड़का ये दिल सांसें थमने लगी"बहुत कुछ रहा है बदल की तर्ज पर--------------------
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