रक्तबीज कोरोना और हमारी चुनौतियां
ऐसी कोई चीज जो स्वयं से स्वयं को अन्तर रहित असंख्य रुप में तैयार कर ले कुछ माध्यमों से उसकी शक्ति का असीमित होना स्वाभाविक है,ऐसी शक्तियां कल्याणकारी नहीं बल्कि विध्वंसकारी होती हैं अपवाद छोड़कर।यह शक्ति कितनी घातक और व्यापक हो सकती है की कल्पना मात्र भी डरावनी होती है, कतिपय कारकों से जन्मी महामारी ऐसी ही शक्ति का स्वरुप है।पतित पावन श्रीदुर्गा चरित्र में रक्तबीज राक्षस का उल्लेख प्रासंगिक है,"रक्तबिन्दुर्यदा भूमौ पतत्यस्य शरीरत:।समुत्पतति मेदिन्यां तत्प्रमाणस्तदासुर:।।"अर्थात रक्तबीज के शरीर से जब रक्त की बूंद पृथ्वी पर गिरती,तो उसी के समान शक्तिशाली अन्य दूसरा महादैत्य पैदा हो जाता है। यहां पर माध्यम रक्त और कारक आसुरी शक्ति है।महामारी कोरोना के संबंध में भी माध्यम संक्रमण है और कारक प्राकृतिक संसाधनों का दोहन और प्रकृति प्रतिकूल आचरण।जिसने दुनिया को जान-माल सहित अघोषित युद्ध में झोंक दिया है और इस युद्ध में सकल मानव जाति को योद्धा बनने का अवसर भी दिया है,सर्व विदित है कि विजय,धर्म और मानवता की होती है,तो आवश्यकता है मानव जाति कल्याण रुपी धर्म को धारण करने की,'सर्वे भवन्तु सुखिन:'को चरितार्थ करने की,क्रूरता का परित्याग करके मानवता स्थापित करने की। संक्रमण के माध्यमों को मारने के लिए खुद से लड़ने की, मतलब बिगड़ी आदतों को सुधारने की, साफ-सफाई-स्वच्छता को व्यक्तित्व का हिस्सा बनाने की।जीवन मूल्यों की महत्ता को समझते हुए एक नए सामाजिक चरित्र को जीने के लिए भीड़-भाड़ का हिस्सा यथासंभव न बनकर, अनावश्यक भीड़ तंत्र का प्रतिकार करके व्यक्तिगत दूरी पालन करके,मुंह पर मास्क या गमछा ढककर।इसे परम्परागत संस्कृति में आमूलचूल परिवर्तन की समयाग्रहीत बयार कह सकते हैं।
प्रचलन में आए दिशा-निर्देश पालनार्थ 'सामाजिक दूरी' को भी समझने की जरूरत है वास्तव में 'सामाजिक दूरी' पालन से आशय व्यक्तिगत दूरी से है समाज से नहीं,जीवनयापन में हम एक-दूसरे से निश्चित दूरी का संकल्प सुनिश्चित करें,दिलों में एक-दूसरे को करीब रखते हुए एक-दूसरे के काम आते हुए एक नए सामाजिक सौष्ठव का सृजन करना।एक बेहतर सामाजिक परिवेश और स्वस्थ प्रर्यावरण की चाहत,जान और जहान की जरूरत हमें हमारी अर्थव्यवस्था को परिवर्तन के लिए प्रेरित कर रहा है। वैसे तो महामारी की कीमत सभी चुका रहे हैं लेकिन चिंतनीय उनका जीवन है जो कीमत के रुप में खुद न चुक जाएं, इनमें खाना-बदोश दिहाड़ी मजदूर, असंगठित क्षेत्र के कामगार, छोटे-मोटे काम कर जीविकोपार्जन करने वाले और नाम के किसान इत्यादि आते हैं।"किसी के पास कायनात तो किसी के खाली हांथ"वाली पूंजीवादी गतिविधियां भी चिंतनीय हैं,एक बहुत मामूली बात साबुन से हांथ धोने को ले लें तो दस गरीब परिवारों में दो-तीन परिवार ही हांथ धोने में साबुन का प्रयोग करते मिलेंगे,दुर्भाग्यवश इन गरीब परिवारों की संख्या कम नहीं है, अनुसूचित जातियां और जनजातियां इन परिवारों की जद में हैं।जब कोई बीमारी कम समय में बहुत तेजी से फैलने लगे अनियंत्रण के खतरे आहट देने लगे तो वह महामारी कहलाती है, सामान्य स्थिति बहाल होने पर फिर वह बीमारी बन जाती है,ऐसा नहीं है कि इससे पहले महामारियां नहीं आयी हैं लेकिन कोरोना का मामला बिल्कुल अलग है,एक तो मायावी राक्षस की तरह इसके संभावित रूप अनेक हो सकते हैं और संक्रंमण के तरीके।पैतृक घर चीन में इसकी पुनः वापसी का रूप-रंग, चाल-ढाल सब बदला है,भगवान बचाए इसके प्रलयंकारी प्रकोप से मानव जाति को।हमारी सामान्य आबादी में असामान्य संयम शक्ति द्वारा रोकना ही हमारी विजय का मापदंड सुनिश्चित करेगा। दुनिया की बड़ी से बड़ी अर्थव्यवस्थाओं की कमर अनवरत टूट रही हैं वैश्विक नीतियां निश्चित ही नए मार्ग प्रशस्त करेंगी।काला सोना की मानक उपाधि से विभूषित कच्चे तेल के दाम भारत के लिए भी बहुत लाभदायक सिद्ध होंगे इसलिए बहुत जरूरी है कि भारत अपनी भंडारण क्षमता तत्काल बढ़ाए,हाल ही में भारत ने 05 मिलियन टन स्ट्रैटजिक भंडारण बनाया है जबकि कम से कम 20मिलियन टन होना चाहिए। गौरतलब है कि मौजूदा समय में चीन के पास 90 मिलियन टन भंडारण क्षमता है। पहले से ही सुस्ती झेल रही भारतीय अर्थव्यवस्था पर संकटकालीन भार अधिक गंभीर हो सकता है,स्थानीय रोजगार सृजन कार्यक्रम पर ध्यान और समाधान चुनौती सरीखी है।उत्पादन स्थगन जनित पलायन से पुनः उत्पादन संकट भी चुनौती ही है।उद्योग जगत कंपनियों में कार्यरत लोगों के प्रति सहानुभूति की बारंबार सरकारी अपील भी चुनौती की आहट तुल्य है।भूख से कोई मरे नहीं जरूरतमंदों तक दाना-पानी पंहुचाना भी चुनौती पूर्ण हैं अस्तु जान और जहान भी के लिए आर्थिक मोर्चे पर कुछ बहुत बड़े फैसले सरकार को लेने होंगे, आर्थिक तंत्र को संभालने के लिए प्रतिभाशाली अर्थशास्त्री और ख्याति लब्ध मोटीवेशन स्पीकरों और प्रबुद्ध वर्ग विशेष के साथ मंत्रणा करनी चाहिए भारत के यशस्वी नेतृत्व को,भविष्य निधि (पीएफ) का सदुपयोग जैसे विकल्पों पर विचार करना चाहिए।कुल मिलाकर संक्षेप में चुनौतियां बहुत हैं तो संभावनाएं भी कम नहीं, बहुत कुछ इस पर निर्भर करता है कि भावी समय में कोरोना का संकट स्तर कितना गहराता है और नियंत्रण की समयावधि।व्यक्तिगत स्तरीय प्रयास फिर समाज स्तरीय प्रयास निश्चित रूप से राष्ट्र स्तरीय प्रयासों की सामूहिक शक्ति का विजय नाद विश्व स्तरीय होगा,"सर्व भवन्तु सुखिन:" की मंगल कामनाओं सहित।
शुभेच्छु 🙏🇮🇳🙏
नरेन्द्र नाथ त्रिपाठी
कॉरोना ने वैश्विक महामारी के रूप में जो तबाही और विश्वव्याप्त आर्थिक मंदी के जिस क्रम को विस्तीर्ण किया है वह आने वाले समय लिए विभीषिका भी है और प्रत्येक इकाई को इस सम्पूर्ण जगत में व्यावहारिकता का एक पाठ भी ।जहां तक रक्तबीज की बात है तो जैसे वो अपने रक्त की बूंद से अपना प्रतिरूप पैदा कर रहा था और मनुष्य जाति को काल कवलित कर रहा था उसी तरह यह विषाणु भी अपनी संख्या में वृद्धि कर रहा है और असमय मनुष्य को काल के गाल में समाहित कर रहा है, दोनों की ही व्युत्पत्ति एक जैसी है। मां दुर्गा ने अवतार ले कर रक्तबीज का वध जिस विशेष तरीके से किया उसी प्रारूप में हमें कुछ विशेष तरीके से इस विषाणु का संवर्धन रोकना है , जिस तरह से हम मां दुर्गा की पूजा अर्चना के लिए जो आंत्यः और वाह्य शुचिता का पालन करते हैं वह प्रारूप हमें इस वैश्विक महामारी से निपटने के लिए मददगार साबित हो सकता है।
ReplyDeleteइस वैश्विक महामारी के समय जो आपत्तिकाल है और हम आर्थिक रूप से बहुत पिछड़ गए हैं तो एक बात जो गौर करने की है वह यह कि हमें अपना आंतरिक ढांचा विकसित करने के लिए प्रयास करने होंगे और हमारी निर्भरता जो चीन और अन्य देशों पर हैं उसके लिए हमें अपने उपलब्ध संसाधनों और प्रबल इच्छा के साथ अपने विकास के लिए संलग्न होना पड़ेगा तथा आत्मनिर्भर बनना पड़ेगा ।स्वदेशी को प्रोत्साहित करना पड़ेगा।इस तरह हम अपना विकास भी कर सकेंगे और आर्थिक आत्मनिर्भर भी हो जाएंगे।
सामरिक स्थित में हम सभी इस तरह की ऊहापोह में होते हैं कि बहुत से नैतिक मूल्यों की तिलांजलि दे देते है लेकिन उन गुणों से ही हम और हमारी संस्कृति की पहचान है अर्थात् हमारी संस्कृति सनातन है और हम सब सनातनी तो सत्य , अहिंसा,अस्तेय ब्रह्मचर्य,अपरिग्रह, यम नियम, दक्षिणा आदि हमारे मूल में अवस्थित हैं। रही बात तेल के भंडारण की तो कुछ तो युक्तिसंगत है लेकिन वसुधैव कुटुंबकम् का व्रत पालन करने वाले देश में अपरिग्रह भी सर्वमान्य है।
अतःप्रबुद्ध वर्ग जो इस विकट परिस्थिति में लगे हुए हैं हमारे परिमार्जन के लिए, हमसबों को एकजुट होकर सरकार, प्रशासन और डॉक्टर, जिन्हें हमारे समाज में भगवान की मान्यता दी गयी है, कि बातों को ध्यान से मनन कर सहयोग करने की जरूरत है. कोरोना नामक दानव से बचाव के लिए जो भी रक्षात्मक युक्तियां बतायी जा रही हैं, उनका हम पुरजोर पालन करें. एक-दूसरे के प्रति सहयोगात्मक रवैया अपनाएं. वस्तुस्थिति की गंभीरता को समझे एवं समझाने का प्रयत्न करें.।
कॉरोना ने वैश्विक महामारी के रूप में जो तबाही और विश्वव्याप्त आर्थिक मंदी के जिस क्रम को विस्तीर्ण किया है वह आने वाले समय लिए विभीषिका भी है और प्रत्येक इकाई को इस सम्पूर्ण जगत में व्यावहारिकता का एक पाठ भी ।जहां तक रक्तबीज की बात है तो जैसे वो अपने रक्त की बूंद से अपना प्रतिरूप पैदा कर रहा था और मनुष्य जाति को काल कवलित कर रहा था उसी तरह यह विषाणु भी अपनी संख्या में वृद्धि कर रहा है और असमय मनुष्य को काल के गाल में समाहित कर रहा है, दोनों की ही व्युत्पत्ति एक जैसी है। मां दुर्गा ने अवतार ले कर रक्तबीज का वध जिस विशेष तरीके से किया उसी प्रारूप में हमें कुछ विशेष तरीके से इस विषाणु का संवर्धन रोकना है , जिस तरह से हम मां दुर्गा की पूजा अर्चना के लिए जो आंत्यः और वाह्य शुचिता का पालन करते हैं वह प्रारूप हमें इस वैश्विक महामारी से निपटने के लिए मददगार साबित हो सकता है।
ReplyDeleteइस वैश्विक महामारी के समय जो आपत्तिकाल है और हम आर्थिक रूप से बहुत पिछड़ गए हैं तो एक बात जो गौर करने की है वह यह कि हमें अपना आंतरिक ढांचा विकसित करने के लिए प्रयास करने होंगे और हमारी निर्भरता जो चीन और अन्य देशों पर हैं उसके लिए हमें अपने उपलब्ध संसाधनों और प्रबल इच्छा के साथ अपने विकास के लिए संलग्न होना पड़ेगा तथा आत्मनिर्भर बनना पड़ेगा ।स्वदेशी को प्रोत्साहित करना पड़ेगा।इस तरह हम अपना विकास भी कर सकेंगे और आर्थिक आत्मनिर्भर भी हो जाएंगे।
सामरिक स्थित में हम सभी इस तरह की ऊहापोह में होते हैं कि बहुत से नैतिक मूल्यों की तिलांजलि दे देते है लेकिन उन गुणों से ही हम और हमारी संस्कृति की पहचान है अर्थात् हमारी संस्कृति सनातन है और हम सब सनातनी तो सत्य , अहिंसा,अस्तेय ब्रह्मचर्य,अपरिग्रह, यम नियम, दक्षिणा आदि हमारे मूल में अवस्थित हैं। रही बात तेल के भंडारण की तो कुछ तो युक्तिसंगत है लेकिन वसुधैव कुटुंबकम् का व्रत पालन करने वाले देश में अपरिग्रह भी सर्वमान्य है।
अतःप्रबुद्ध वर्ग जो इस विकट परिस्थिति में लगे हुए हैं हमारे परिमार्जन के लिए, हमसबों को एकजुट होकर सरकार, प्रशासन और डॉक्टर, जिन्हें हमारे समाज में भगवान की मान्यता दी गयी है, कि बातों को ध्यान से मनन कर सहयोग करने की जरूरत है. कोरोना नामक दानव से बचाव के लिए जो भी रक्षात्मक युक्तियां बतायी जा रही हैं, उनका हम पुरजोर पालन करें. एक-दूसरे के प्रति सहयोगात्मक रवैया अपनाएं. वस्तुस्थिति की गंभीरता को समझे एवं समझाने का प्रयत्न करें.।
आपका अध्ययनोपरांत विश्लेषण न केवल प्रेरक है बल्कि संदेशप्रद भी,सदैव प्रेरणा और मार्गदर्शन का आकांक्षी।
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