'कुत्ता'
कुत्ता एक वफादार चौपाया प्राणी है,तन्मयता वाली स्वामि भक्ति जग-जाहिर है सदा से।प्राणि श्रेष्ठ मानव भी मानता है कि वफादारी में कुत्ते का सानी नहीं है।यह प्रिय प्राणी भेड़िए कुल की प्रजाति है कुछ विशेष मनुष्यों की ही तरह यह भी सर्वाहारी होता है। संवेदनशीलता और सूंघने की अद्भुत शक्ति इसका अलग मुकाम तय करती है, अत्याधुनिक समाज में विशेष किस्म के कुत्तों के प्रति दीवानगी, लाड़-प्यार और दुलार ने उसके रूतबे को नई ऊंचाई दी है। बचपन से ही तुलनात्मक अध्ययन में 'श्वान निद्रा' सिखाई जाती है,विश्वस्तरीय दस नस्लों में लैब्राडोर,जर्मन शेफर्ड,बुलडाग,माल्टीज,बीगल्स,गोल्डन रिट्रीवर,जैक रसेल टेरियर,पग,न्यूफाउंडलैंड,पूडल प्रमुख हैं,मूल गुणों के अतिरिक्त अलग-अलग नस्लों की अलग-अलग उपयोगिताएं हैं।इन तमाम अच्छाइयों और उपयोगिताओं के अतिरिक्त दृष्टांत सरीखे उपमान भी अध्ययन की विषयवस्तु हैं ,मसलन बद्दुआ और गाली में कुत्तों का जिक्र आखिर क्यों होता है?ऐसा क्या है इस लोकप्रिय प्राणी में, किसी को कुत्ता कहना बहुत बड़ी गाली है,या किसी को कुत्ता कहकर उसकी बेइज्जती से संतुष्ट हुआ जाता है।इस परिप्रेक्ष्य में कुत्ते का औसत दर्जे का प्रचलन है, इतना ही नहीं मौत के संबंध 'कुत्ते की मौत' मानस पटल पर जुगुप्सा जागृत करती है।लोग जाने-अनजाने एक-दूसरे को 'कुत्ते की मौत' की बद्दुआ भी बड़े गर्व से बांटते हैं और कभी-कभी तो स्वयंभू बनकर 'कुत्ते की मौत' मारने का दम भरते हैं। कुत्ते की एक और विशेषता है जो उसके लिए गुण हो सकता है लेकिन सामरिक दृष्टि से दोष ही है,वह यह है कि कुत्ता अकारण ही काट सकता है,भौंक सकता है,यहां भी ऐसे सभी मनुष्य जो अकारण ही किसी को चोट पंहुचाते है, जान-माल का नुक़सान करते हैं उपमेय हो सकते हैं उपमान कुत्ते के लिए,यहां पर रहीम दास जी का दोहा प्रासंगिक है "रहिमन ओछे नरन सो,बैर भली न प्रीत।काटे चाटे स्वान के,दोऊ भांति विपरीत।। अर्थात ओछे मतलब तुच्छ मानसिकता के लोगों की न तो प्रीत अच्छी है और न ही बैर जैसे कुत्ते का काटना और चाटना विपरीत नहीं माना जाता है। लेकिन प्राणि श्रेष्ठ मनुष्य का चाटना, काटने से अधिक घातक सिद्ध हो सकता है,ऐसी मनोदशा वाले उपमेय मनुष्यों के लिए उपमान कुत्ते का अपमान है,काम वासना की प्रवृत्ति भी कुत्ते की जातियता की परिचायक हो सकती है,लेकिन यहां भी प्राणी श्रेष्ठ मनुष्य के लिए कुत्ते का उपमान(समानता) होनी ही चाहिए,रोज-दिन के यौवन शोषण,घटित बलात्कार सहित नृशंस हत्याएं कुत्तों का कद छोटा कर देतीं हैं, तथाकथित सभ्य समाज के मनुष्यों के सम्मुख।कुत्ता 'भड़िहाई' भी गजब की करता है,जब चोरी से चुपके से सूनेपन का फायदा उठाकर वह बर्तन-भांड़ों में मुंह डालकर कुत्ता झटके में कुछ चुरा ले जाए तो उसे 'भड़िहाई' कहते हैं। इसका दृष्टांत देखिए महाबली,बाहुबली, अद्भुत शक्ति संपन्न त्रिलोकी विजेता दसमुख रावण के कारनामे से "सो दससीस स्वान की नाईं।इत उत चितइ चला भड़िहाईं ।।इमि कुपंथ पग देत खगेसा,रह न तेज तन बुधि बल लेसा।।" अर्थात कुमार्ग पर पैर रखते ही तेज,बुद्धि एवं बल-पौरूष सब क्षीण हो जाता है, चूंकि भड़िहाई कुत्ते का जातिगत गुण है,अस्तु भड़िहाई ने रावण को भी कुत्ता बना दिया,जब वह कुत्ते की तरह आचरण करके इधर-उधर ताकते हुए जगत जननी मां सीता को चुराने गया था।अब यहां भड़िहाई की तुलना प्राणि श्रेष्ठ मनुष्य से करें तो जाहिर है कि कुत्ता यहां भी मात खा ही जाएगा।संतजनो/सज्जनों के चरित्र में भी दृष्टांत उल्लेखनीय है, देखिए "जो विषया संतन तजी, मूढ़ ताहि लपटात। ज्यों नर डारत वमन कर,स्वान स्वाद सों खात।।" संतजन जिन विषय -वासनाओं का त्याग कर देते हैं,उन्ही को पाने के लिए मूढ़ जन लालायित रहते हैं,जैसे वमन किया हुआ अन्न कुत्ता बड़े स्वाद से खाता है।सदाशय यह है कि उपमेय और उपमान का आलोचनात्मक अध्ययन, गुण-दोषों का विश्लेषण कुत्ते को कुत्ता जरूर बनाता है, लेकिन जब वही विश्लेषण प्राणि श्रेष्ठ मनुष्य को कुत्ता बनाता है तो बेशक कुत्ते का गौरवान्वित होना स्वाभाविक है लेकिन मनुष्य का क्या?हांथी अपनी चाल में मस्त झूमता रहता है और कुत्ते भौंकते रहते हैं,लोक व्यवहार में भी भौंकने वालों की कमी नहीं है,वैसे तो लगभग सभी चौपाए प्राणी संतान धर्म से विमुख ही होते हैं, संतानोत्पत्ति के बाद न कोई किसी का पिता और न कोई किसी की संतान! जबकि मादा को माता के रूप में लाड और धर्म निर्वाहन भी देखा जाता है, चूंकि बात कुत्ते की हो रही है अस्तु उन मनुष्यों का जीवन भी अध्ययनीय है जो संतान के प्रति अपेक्षित यथोचित धर्म निर्वाहन से विमुख होते हैं। मनुष्य श्रेष्ठ के बाद शेष सभी कुत्ते से तुलना के भी हकदार नहीं हैं।आपका क्या ख्याल है?
जिज्ञासार्थ
नरेन्द्र नाथ त्रिपाठी 🙏
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