'बचेंगी बेटियां तब तो पढ़ेंगी बेटियां!'
हे भगवान! उठा ले ऐसी कानून व्यवस्था शासन-प्रशासन /सरकार सरीखी छत्र छाया । सामान्यतः अधिकांश प्राणियों को अपनी संतान से अतिशय प्रेम होता,प्राणि श्रेष्ठ मानव को अधिकाधिक होता है,अपने प्राणों से भी प्रिय होती हैं संताने।लेकिन विडंबना कभी-कभी ऐसी होती है कि वही मात-पिता जब वृद्ध होते हैं और संताने जब बड़ी हो जाती हैं,दुर्भाग्यवश वही संतान जब कर्तव्य बोध से विमुख हो जाती हैं,यातनाओं की कारक बन जाती हैं,नराधम बन जाती है ,अपराध का पर्याय बन जाती है तो वही वृद्ध माता -पिता अपनी छत्र छाया संतान के लिए दुआ नही बद्दुआ मांगने लगते हैं,उनका अभागापन चीख -चीख कर कहता है कि ' हे भगवान इससे अच्छा तो हम निःसंतान होते'। लेकिन इससे भी उनका दारूण दुःख कम नही होता,और अनसुना करूण क्रंदन खुद के मरने की मन्नत करने लगता है। चूंकि सरकारें और उनकी राज -काज संचालक प्रशासनिक व्यवस्थाएं जन-गण के लिए छत्र -छाया सरीखी होती हैं।अंतिम छोर के निरीह से निरीह शोषित-पीड़ित,वंचित के लिए न्याय स्वरूप सुरक्षा कवच ...