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Showing posts from August, 2020

'बचेंगी बेटियां तब तो पढ़ेंगी बेटियां!'

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हे भगवान! उठा ले ऐसी कानून व्यवस्था शासन-प्रशासन /सरकार सरीखी  छत्र छाया ।  सामान्यतः          अधिकांश प्राणियों को अपनी संतान से अतिशय प्रेम होता,प्राणि श्रेष्ठ मानव को अधिकाधिक होता है,अपने प्राणों से भी प्रिय होती हैं संताने।लेकिन विडंबना कभी-कभी ऐसी होती है कि वही मात-पिता जब वृद्ध होते हैं और संताने जब बड़ी हो जाती हैं,दुर्भाग्यवश वही संतान जब कर्तव्य बोध से विमुख हो जाती हैं,यातनाओं की कारक बन जाती हैं,नराधम बन जाती है ,अपराध का पर्याय बन जाती है तो वही वृद्ध माता -पिता अपनी छत्र छाया संतान के लिए दुआ नही बद्दुआ मांगने लगते हैं,उनका अभागापन चीख -चीख कर कहता है कि ' हे भगवान इससे अच्छा तो हम निःसंतान होते'। लेकिन इससे भी उनका दारूण दुःख कम नही होता,और अनसुना करूण क्रंदन खुद के मरने की मन्नत करने लगता है।               चूंकि सरकारें और उनकी राज -काज संचालक प्रशासनिक व्यवस्थाएं  जन-गण के लिए छत्र  -छाया सरीखी होती हैं।अंतिम छोर के निरीह से निरीह शोषित-पीड़ित,वंचित के लिए न्याय स्वरूप सुरक्षा कवच  ...

'आयकर पर प्रधानमंत्री जी की अभिनंदनीय चिंता'

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' आयकर ' पर गहरी चिंता प्रधानमंत्री जी की अभिनंदनीय है,लेकिन आयकर के बड़े चोरों पर डंडा भी जन-गण-मन मनोरथ है।मेरे सरकार! न खांऊगा तो ठीक है,चरितार्थ भी है लेकिन ' खाने नहीं दूंगा' अपुष्ट है,चरितार्थ भी नही है।गौरतलब है कि "न खांऊगा न खाने दूंगा" यह ध्येय श्लोगन था आगाज था बतौर सरकार माननीय प्रधानमंत्री जी का। नौकरशाह,उद्योगपति,और माननीय तमाम न केवल खा रहें हैं बल्कि बांध के भी ले जा रहें,खाने का आलम यह है कि न बदहजमी का ख्याल है न रोग की चिंता है और न ही दूसरे किसी के निवाले की।व्यवसायों के पंजीकरण और पैन पर निगरानी जरूरी है।किसान बने उद्यमियों/नौकरशाहों और अकूत संपित्त के माननीयों पर मय वसूली दंडात्मक कार्यवाही आग्रह की विषय वस्तु है।जमीन से जुड़े नेतृत्व की परिभाषा और मायने बदल गए हैं,मतलब ग्रामीणांचल से लेकर अर्बन और महानगरीय जमीनों बेशुमार लगाव शोध का विषय है,कुछ नराधमों का दो चार बीघे से जमीनी जुड़ाव है तो बहुतों का दस-बीस-पचास बीघे से। अदायगी के संबंध में माननीय प्रधानमंत्री जी के आग्रह को क्रियात्मक रूप में स्वीकार करना जन-गण की नैतिक जिम्...

भूमिपूजन/शिलान्यास की दो अति विशेष बातें,पाठकों का संवाद निनिवेदित है।

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##जयसियाराम यज्ञ विधान और निहित कल्याण की व्यापकता,सार्वभौमिकता यजमान के मनोरथ पर निर्भर करती है।पौराणिक कथाएं और  ऐतिहासिक अध्ययन यज्ञ की महत्ता और सार्थकता की पुष्टि करते हैं,कल्याणकारी अभीष्ट की प्राप्ति यज्ञ रूप देवपुरूष और दक्षिणा रूपी देवनारी से संभव है,यहां दान का उल्लेख प्रासंगिक है यह समझने के लिए कि दान कभी दक्षिणा नही हो सकती क्योंकि दक्षिणा ऐच्छिक नहीं होती बल्कि जरूरी होती है व्यास पदासीन पुरोहित का धर्म सम्मत अधिकार है दक्षिणा।अनुष्ठान संकल्प से सिद्ध होता है और संकल्प अनुष्ठान से,ईष्टदेव और स्वयं को साक्षी मानकर प्रथम पूज्य गौरी गणेश के सम्मुख पुरोहित द्वारा संकल्प कराया जाता है।                         बतौर यजमान श्रीमान नरेन्द्र दामोदर दास मोदी ने जो भी संकल्प लिया हो,संभवतः लोक कल्याण ही होगा,चूंकि प्रस्थिति संकल्प का दायरा निश्चित करती है,जाहिर सी बात है जितनी बड़ी प्रस्थिति होगी संकल्प भी उतना बड़ा होगा या संकल्प जितना बड़ा होगा प्रस्थिति उतनी बड़ी होगी ।रामलला विराजमान न्यास मन्दिर के भूमि ...