भूमिपूजन/शिलान्यास की दो अति विशेष बातें,पाठकों का संवाद निनिवेदित है।

##जयसियाराम
यज्ञ विधान और निहित कल्याण की व्यापकता,सार्वभौमिकता यजमान के मनोरथ पर निर्भर करती है।पौराणिक कथाएं और  ऐतिहासिक अध्ययन यज्ञ की महत्ता और सार्थकता की पुष्टि करते हैं,कल्याणकारी अभीष्ट की प्राप्ति यज्ञ रूप देवपुरूष और दक्षिणा रूपी देवनारी से संभव है,यहां दान का उल्लेख प्रासंगिक है यह समझने के लिए कि दान कभी दक्षिणा नही हो सकती क्योंकि दक्षिणा ऐच्छिक नहीं होती बल्कि जरूरी होती है व्यास पदासीन पुरोहित का धर्म सम्मत अधिकार है दक्षिणा।अनुष्ठान संकल्प से सिद्ध होता है और संकल्प अनुष्ठान से,ईष्टदेव और स्वयं को साक्षी मानकर प्रथम पूज्य गौरी गणेश के सम्मुख पुरोहित द्वारा संकल्प कराया जाता है।
                        बतौर यजमान श्रीमान नरेन्द्र दामोदर दास मोदी ने जो भी संकल्प लिया हो,संभवतः लोक कल्याण ही होगा,चूंकि प्रस्थिति संकल्प का दायरा निश्चित करती है,जाहिर सी बात है जितनी बड़ी प्रस्थिति होगी संकल्प भी उतना बड़ा होगा या संकल्प जितना बड़ा होगा प्रस्थिति उतनी बड़ी होगी।रामलला विराजमान न्यास मन्दिर के भूमि पूजन/ शिलान्यास में अति विशेष और अद्भुत यह रहा कि व्यास पदासीन पुरोहित महान ने व्याप्त और शेष समस्याओं के समाधान रूपी संकल्प को ही दक्षिणा रूप स्वीकार कर लिया।ॐहरि ॐ,ॐ नमो भगवते  वासुदेवाय नमो नमः।
             दूसरी महत्वपूर्ण अति विशेष बात यह रही कि यजमान श्री नरेन्द्र दामोदर दास मोदी ने यज्ञ विधान और पूजन का धर्म सम्मत पालन नहीं किया,चूंकि यज्ञ और पूजन विधान में सपत्नीक उपस्थिति अपरिहार्य होती है।यजमान मोदी को अपनी भार्या सहित पूजन और यज्ञाहुति करनी चाहिए थी।स्वयं मर्यादापुरुषोत्तम भगवान राम ने भी अनुपालन किया था,अवसर की उपलब्धता भी बहुत बन पड़ी जब यजमान ने बतौर प्रधानमंत्री नहीं बतौर राम भक्त (वैयक्तिक)यजमानी की।निश्चित रूप से मोदी जी न केवल यज्ञ विधान/पूजन में चूके बल्कि पति धर्म में भी ऐतिहासिक चूक दर्ज की।'मन की बात के महानायक तक हमारे भी मन की बात पंहुच जाए' यही याचना है।बाबा तुलसीदास जी का भी कहना है------"पर उपदेश कुशल बहुतेरे।जे आचरहिं ते नर न घनेरे।।
                      ।। जय सियाराम ।।
                        नरेन्द्र नाथ त्रिपाठी

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