मनभावन पावन 'राखी'
रिश्ते-नाते हमारे जन्म से पहले जीवन के बाद और जीवन के साथ -साथ अपरिहार्य रूप से विद्यमान रहते हैं।चूंकि समाज संबधों की एक व्यवस्था है कहने का आशय यह है कि जहां संबध हैं वहां समाज है,संबधों का वर्गीकरण किया जा सकता है लेकिन मूलतः रक्त संबंध और गैर रक्त व्यवहारिक संबध प्रमुख वर्गीकरण है रक्त संबंध को प्रदत्त और गैर रक्त को अर्जित संबंधों के रूप में समझा जा सकता है।
सामाजिक त्यौहारों की एक वृहद श्रंखला है और सभी का सामाजिक बहुतार्किक सरोकार है।इसी कड़ी में है हमारा त्यौहार 'राखी'/रक्षाबंधन,यह त्यौहार भाई-बहन के पवित्र रिश्ते का प्रतीक है,बहनें भाइयों की कलाई में अपना प्यार बांधती हैं अपनी अपेक्षाएं कच्चे धागे के जरिए कहती हैं अपनी अस्मिता की रक्षा का भार सौंपती है और भाई ताउम्र उक्त जज्बातों का ख्याल एवं पावन रिश्ते की गरिमा के लिए संकल्पित होते हैं,मजे की बात तो यह है कि यह सब संवाद मन ही मन में होता सदा सामर्थ्य समर्थ शब्दों की प्रासंगिकता गौड़ हो जाती है,देश में आवागमन का मय अति उत्साहित उत्सवित माहौल छा जाता है,भाइयों को बहनों का और बहनों को भाईयों का इंतजार रहता है,बाल मनुहार का अपना अलग मजा और अंदाज होता है लोग अपनी -अपनी विवाहिताओं को लेकर बड़े गर्वित भाव से एक ससुराल से दूसरी ससुराल पंहुचाते हैं,आपसी समझ की एक मिशाल नजर तब आती है जब बहन के न पंहुचने की दशा में भाई स्वयं पंहुच जाते है,कुल मिलाकर आनंद ही आनंद व्याप्त होता है,इतना ही नहीं मुंहबोली बहनों और मुंहबोले भाईयों का कच्चे धागे के प्रति समर्पण अलौकिक हो जाता है इतिहास साक्षी है यह 'राखी' असंभव को संभव व दुर्लभ को सुलभ बना देती है रक्षा सूत्र का विधान और मंगल कामनाएं बांधने और बंधवाने वाले दोनों के लिए एक दूसरे के प्रति होती हैं।मतलब बहनें भी भाईयों की सुख-शान्ति-समृद्धि और लंबी आयु की कामना करती हैं ईष्ट से प्रार्थना करती हैं। कमाल की है राखी,कितना मनमोहक कितना पावन कितना दिव्यानुभूतिक होता है बहनों काअर्चन,वंदन और अभिनन्दन।धन्य है हमारी संस्कृति धन्य है तीज -तयौहार और धन्य है हमारा भारत धन्य है भारतीयता ।
येन बद्धो बलिराजा दानवेन्द्रो महाबल:।तेन त्वामपि बध्नामि रक्षे मा चल मा चल ॥ "जिस रक्षासूत्र से महान शक्तिशाली दानवेन्द्र राजा बलि को बाँधा गया था, उसी सूत्र से मैं तुझे बांधती/बाँधता हूँ। हे रक्षे (राखी)! तुम अडिग रहना (तू अपने संकल्प से कभी भी विचलित न हो।)"भगवत पुराण और विष्णु पुराण में ऐसा बताया गया है कि बलि नाम के राजा ने भगवान विष्णु से उनके महल में रहने का आग्रह किया। भगवान विष्णु इस आग्रह को मान गए और राजा बलि के साथ रहने लगे। मां लक्ष्मी ने भगवान विष्णु के साथ वैकुण्ठ जाने का निश्चय किया, उन्होंने राजा बलि को रक्षा धागा बांधकर भाई बना लिया। राजा ने लक्ष्मी जी से कहा कि आप मनचाहा उपहार मांगें। इस पर मां लक्ष्मी ने राजा बलि से कहा कि वह भगवान विष्णु को अपने वचन से मुक्त कर दें और भगवान विष्णु को माता के साथ जानें दें। इस पर बलि ने कहा कि मैंने आपको अपनी बहन के रूप में स्वीकार किया है। इसलिए आपने जो भी इच्छा व्यक्त की है, उसे मैं जरूर पूरी करूंगा। राजा बलि ने भगवान विष्णु को अपनी वचन बंधन से मुक्त कर दिया और उन्हें मां लक्ष्मी के साथ जाने दिया। प्रकृति से रक्षा के लिए प्रकृति की सुरक्षा के लिए पेड़-पौधों को राखी (रक्षा सूत्र) बांधने का विधान भी है।आइए प्राकृतिक दोहन से धरती मां वसुंधरा को बचाने का उसकी रक्षा का रक्षा सूत्र धारण करें वन -उपवन,नदियों को सुरक्षित करें प्राकृतिक संपदाओं क्षिति-जल-पवन-गगन को संरक्षित करें।
बढ़ती उम्र और परिवार विस्तार के साथ भाई -बहन के रिश्ते-नातों में औसत दर्ज की कमी अध्ययन की विषय वस्तु है।सदाशय यह है कि बचपन वाला एक -दूजे को प्यार और समर्पण सदैव बना रहना चाहिए कदाचित विचलित होने पर बचपन का लाड -प्यार -दुलार स्मरण करना चाहिए भाव का रत्तीभर अभाव नहीं होना चाहिए,नारी जाति से किसी भी रिश्ते में सम्मान सर्वोपरि होना चाहिए जो अपेक्षा हम दूसरे से करते हैं अपने परिवार के लिए वहीं चरितार्थ होना चाहिए दूसरे के परिवार के लिए। निश्चित रूप से घर -परिवार का सम्यक सौष्ठव बनेगा,और एक अच्छे समाज से अच्छे देश और दुनिया का अवतरण होगा ताकि प्रकृति प्रदत्त संपदाओं की निरनरता बनी रहे और धन्य हो बड़ भाग मानुष तन और धन्य हो मानवता।
नरेन्द्र नाथ त्रिपाठी 🙏
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