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Showing posts from April, 2020

यह कैसी 'ममता' है?पं बंगाल विशेषांक!

पश्चिम बंगाल का सियासी जादू बेकरार सरकार पर सर चढ़ कर बोल रहा है, राजनैतिक अखाड़े में आरोप-प्रत्यारोप वाले दांव-पेंचों के बीच निरन्तर गिरता राजनैतिक स्तर और संक्रंमण का बढ़ता खतरा राष्ट्रीय चिंतन का विषय है,किसी राज्य के निवासियों की सभी तरह से सुरक्षा उस राज्य की सरकार का बाध्यकारी संवैधानिक उत्तर दायित्व है,संकटकाल में इस उत्तर दायित्व के साथ मुख्यमंत्री की नैतिक जिम्मेवारी भी सुनिश्चित हो जाती है,चूंकि संवेदनहीन,राष्ट्रीय भावना रहित,जनहित की नजरंदाजी वाली निरंकुश व्यवस्था, अधिनायक तंत्र और तानाशाही की परिचायक है,महामारी कोरोना को लेकर मुख्यमंत्री पं बंगाल ममता बनर्जी का  समसामयिक तानाशाही रवै‌इय्या भारत के संघीय ढांचे,और उसकी संवैधानिक व्यवस्था पर कुठाराघात है। महामारी से लड़ रहे भारत के पराक्रम और प्रयासों से दुनिया न केवल चकित हैं बल्कि नतमस्तक होकर धन्यवाद भी ज्ञापित कर रही है। लेकिन मुख्यमंत्री ममता न केवल इस गौरवान्वित खबर से बेखबर हैं बल्कि खुद की जिम्मेवारियों से भी । लड़ाई के शुरूआती दिनों में ऐसा लगा कि राजनीति की दीदी,राजनैतिक मत-भेद को ताख पर रखकर केवल और केवल कोरोना ...

रक्तबीज कोरोना और हमारी चुनौतियां

ऐसी कोई चीज जो स्वयं से स्वयं को अन्तर रहित असंख्य रुप में तैयार कर ले कुछ माध्यमों से उसकी शक्ति का असीमित होना स्वाभाविक है ,ऐसी शक्तियां कल्याणकारी नहीं बल्कि विध्वंसकारी होती हैं अपवाद छोड़कर।यह शक्ति कितनी घातक और व्यापक हो सकती है की कल्पना मात्र भी डरावनी होती है, कतिपय कारकों से जन्मी महामारी ऐसी ही शक्ति का स्वरुप है।पतित पावन श्रीदुर्गा चरित्र में रक्तबीज राक्षस का उल्लेख प्रासंगिक है,"रक्तबिन्दुर्यदा भूमौ पतत्यस्य शरीरत:।समुत्पतति मेदिन्यां तत्प्रमाणस्तदासुर:।।"अर्थात रक्तबीज के शरीर से जब रक्त की बूंद पृथ्वी पर गिरती,तो उसी के समान शक्तिशाली अन्य दूसरा महादैत्य पैदा हो जाता है। यहां पर  माध्यम रक्त और कारक आसुरी शक्ति है।महामारी कोरोना के संबंध में भी माध्यम संक्रमण है और कारक प्राकृतिक संसाधनों का दोहन और प्रकृति प्रतिकूल आचरण।जिसने दुनिया को जान-माल सहित अघोषित युद्ध में झोंक दिया है और इस युद्ध में सकल मानव जाति को योद्धा बनने का अवसर भी दिया है,सर्व विदित है कि विजय, धर्म और मानवता की होती है,तो आवश्यकता है मानव जाति कल्याण रुपी धर्म को धारण करने की,'स...

आजादी के बाद भारत में बहुत कुछ बदला लेकिन नहीं बदले मुस्लिम मन और मुद्दे ?

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महापुरुष कुल विभूषित वीर भूमि भारत ने आजादी के बाद चुनौतियों को अवसर का पर्याय बनाकर प्रजातांत्रिक मूल्यों को विश्व के समक्ष आस्था और अध्ययन हेतु न‌ए कलेवर में प्रस्तुत किया। राष्ट्र ने सेवा क्षेत्र,कृषि क्षेत्र का विस्तार बुनियादी ढांचे के साथ किया, निरंतर वैज्ञानिक उपलब्धियां और शैक्षिक प्रगति प्राप्त की लेकिन कतिपय कारणों से चिकित्सा जगत में मांग और पूर्ति में औसत दर्जे की कमी को नजरंदाज नहीं किया जा सकता है।इसका यह मतलब भी नहीं है कि चिकित्सा क्षेत्र में काम नहीं हुआ विकास नहीं हुआ,हुआ लेकिन अनवरत जनसंख्यीय विकास के अनुरूप नहीं हुआ। दुर्भाग्यवश स्वतंत्र और गणतंत्र भारत के साक्षी आधार स्तंभ, भूमिका पुंज महापुरुष असमय काल कलवित  होकर इतिहास बनते गए,तत्कालीन क्रूर राजनीति के खूनी पंजे अध्ययन का विषय हैं। जाने-अनजाने हम अपनी वैदिक संस्कृति से सुदूर होकर पाश्चात्य संस्कृति का अंधानुकरण करते चले आ रहे हैं,जीवन मूल्यों की उपेक्षा और नैतिक पतन भी हमारी उन्नति के साथ कदमताल कर रही है,अभिशप्त राजनीति,सत्तासुख व वैभवी विलासिता ने और भ्रष्ट नौकरशाही ने महापुरुषों के त्याग और बल...

#पालघर संतजनो की क्रूर हत्याओं का सच?

किसी झुंड या भीड़ द्वारा हत्या की साज़िश करना,लक्ष्य पर प्राणघातक हमले करना, वारदात को अंजाम देना माब लिंचिग कहलाता है। दुर्भाग्यवश शब्द MOB LYNCHING (माब लिंचिग) बहुप्रचलित हो रहा है तथाकथित अत्याधुनिक सभ्य समाज में,इस प्रायोजित दुष्कर्म में संविधान सम्मत कानून व्यवस्था को ससम्मान ताख पर रख दिया जाता है,कभी -कभी तो कानून के मजबूत कंधे ही झुककर धन्यानुभूतिक होते हैं।इसका विभत्स रुप अति उत्साहित होकर लक्ष्य को इतना मारता है कि मृत्यु हो जाती है, चूंकि कानून की उपहासिक कमजोरी इनके जेहन में यह होती  है कि 'भीड़ की कोई शक्ल नहीं होती' लेकिन सच यह भी है कि भीड़ की शक्ल में पिशाची-शैतानी सोंच होती है।यह भीड़ को दो हिस्सों में बांटती है और ये हिस्से बाकायदा अपने-अपने मजहबी या जातीय उन्मादी लिबास में खड़ी होती है या खड़ी कर दी जाती है।आसानी से समझा जा सकता है कि इस लज्जित कायर दुष्कर्म में घटना स्थल,पात्र और परिस्थितियां सब पूर्व नियोजित होती हैं,माब लिंचिग की महती कृपा इतने से समझी जा सकती है कि कभी-कभी इच्छित हत्या या हत्याओं को माब लिंचिग की छद्म काया से विभूषित कर दिया जाता है।   ...

"जान भी जहान भी "

महामारी जनित *लॉकडाउन* निहित कल्याणकारी मनोरथ को पूर्ण कर रहा है,परिणाम स्वरुप स्थितियां अनियंत्रित नहीं हो पाईं। किसी भी देश के लिए दीर्घकालिक लॉकडाउन असाध्य है,भारत जैसे अति विशाल के लिए लॉकडाउन की समयावधि से उपजे *अर्थ संकट* का  व्यापक,जन-जन पर  प्रभावी होना स्वाभाविक होगा,यह प्रतिदिन अपनी *भारी-भरकम कीमत* वसूल रहा है। इसलिए जरुरी है कृषि कार्यों के साथ व्यवसायिक गतिविधियां भी शुरू हों,समझना जरूरी है कि संक्रमणकालीन सूरतेहाल फिलहाल बेहाल है, सामान्य स्थिति बहाल के कयाश   फिक्रमंद हैं।            अस्तु जीवन बचाने की कोशिशों के के बीच जीविकोपार्जन के संसाधनों को धीरे-धीरे ही सही गतिमान करना *जान* *भी जहान* *भी* को परिभाषित करता है।जिसका जिक्र यशस्वी नेतृत्व ने भी किया है। ऐसे में यह बहुत जरुरी हो जाता है कि हम जारी दिशा-निर्देशों का पालन स्वयं सुनिश्चित करें। मतलब *"एक तरफ कुआं दूसरी तरफ खांई "* की यथास्थिति में हमें दोनों से बचकर चलना है,काम आसान नहीं है तो मुश्किल भी नहीं।हम न भूलें जरा सी लापरवाही की कीमत कितनी भारी हो सकती है? लिहाज...

#तब्लीगी जमात का सच

तब्लीग  शब्द मिशन के  समानांतर है,उद्देश्यपूर्ण व्यवस्थित कार्य योजना क्रियान्वित करना मिशन या तब्लीग है,और मशगूल लोग मिशनरी  या तब्लीगी । जमात का मतलब समूह, झुंड या कतार से है।तब्लीगी जमात ऐसे लोगों का झुंड होता है जो अपने ढंग से अल्ला-ताला के रसूल और मनगढ़ंत इस्लाम का प्रचार करते हैं। मरकज मतलब एक ख्याल विशेष वाले व्यक्तियों को इकट्ठा होने की जगह या इमारत।मरकज से देश के तमाम प्रदेशों और शहरों को के लिए लगभग आठ से दस लोगों की जमात निकलती है,ये तब्लीगी जमाती घर-घर जाकर संबंधित लोगों को नजदीकी मस्जिद में इकट्ठा होने की अपील करते हैं। गौरतलब है तब्लीगी जमात का स्थापना उद्देश्य शांतिपूर्ण ढंग से खुदा पाक का  इंसानियत के वास्ते संदेश और जरूरी इल्म लोगों के बीच पहुंचाना बताया जाता है, जिसका गठन 1926-1927 में निजामुद्दीन के मौलाना इलियास कांधलवी ने कटृर इरादों के साथ किया था।यह कटृर सुन्नी इस्लामी धर्म प्रचार आन्दोलन है जबकि कट्टरता किसी भी धर्म विशेष के लिए उचित नहीं है चूंकि कटृरता धर्मांध कर देती है,और वैमनस्ता की पोषक भी हो सकती है, हां यह उल्लेख कर देना बहुत जरूरी ...

लॉकडाउन निहितार्थ और भव्य भारत

सामान्य बोलचाल की भाषा में  लॉकडाउन  का अर्थ तालाबंदी है,यह आपातकालीन व्यवस्था होती है,मतलब आपदा और संकटकाल में जनसुरक्षा और जनहित को ध्यान में रखते हुए स्थानीय प्रशासन और सरकारों द्वारा लागू किया जाता है।इस दौरान लोगों को निर्देशित किया जाता है कि वो अपने घरों पर ही रहें सुरक्षाबलों से शासनादेश पालन सुनिश्चित किया जाता है और  निवासियों से अपेक्षा की जाती है दिशा-निर्देशों के पालन की  जीवनोपयोगी आवश्यक वस्तुओं और सेवाओं के लिए अनुमति ली जाती है। अमेरिका में 09/11 आतंकी हमले के बाद तीन दिन का लॉकडाउन किया गया था,दिस 2005 में न्यू साउथ वेल्स पुलिस द्वारा दंगा रोकने के लिए लॉकडाउन किया गया था, बोस्टन शहर में आतंकियों की खोज के लिए अप्रैल 2013 को लॉकडाउन किया गया था, नवंबर 2015 में पैरिस हमले के बाद संदिग्धों को हिरासत में लेने के लिए और 2015 में ब्रुसेल्स में पूरे शहर को  लॉकडाउन  किया गया था।          चीन के वुहान से देश-दुनिया की यात्रा पर निकले जानलेवा कोरोनावायरस के खतरे को कम से कम करने के लिए देश भारत में  आवश...

#भारत की #करोना से लड़ाई में जाहिल जमात की भूमिका

जैसा कि हमने अपने इससे पहले ब्लाग/लेख में बतलाने की चेष्टा की थी कि कोरोना से युद्ध करने में हमें वाह्य शक्तियों से अधिक आंतरिक शक्तियों से लड़ना होगा।जाहिल जमात ने अपने नीचतम स्तर से अघोषित युद्ध की दस्तक का दुस्साहस किया है,उनके मंसूबे कितने सफल होंगे,उनका हश्र क्या होगा यह अलग बात है।हम न भूलें यह लड़ाई साहसिक कम संयमित और संवेदनशील अधिक है,मतलब इस लड़ाई में देश के विरुद्ध दुश्मन लाचार,बेबस,निरीह दीन,हीन, तन-मन से जर्जर दुर्बल अदना सा व्यक्ति  भी महायोद्धा की भूमिका  में हो सकता है और इनके सरपस्तों की पहचान महाचुनौती सिद्ध होगी।          महामारी कोरोना से भारत की लड़ाई में पहली बाधा आई पलायन इसे हम प्रायोजित पलायन कहना समीचीन है ।खैर व्यवस्थाओं ने उसे संभाल लिया,लेकिन पलायन वाले राज्यों की नाकामी और राज्य प्रमुखों की तुच्छ मानसिकता को जरूर उजागर कर दिया,इस सबके बावजूद भी  बहुत अच्छे से लड़ रहे भारत की भव्यता कुछ आस्तीन के सांपों को अच्छी न लगी संभवतः उनके सरपरस्तों ने उन्हें फरमान जारी किया होगा "कि जग -जाहिर जाहिलियत को  हथियार बनाकर कोरो...