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Showing posts from November, 2019

गांधी अपमान बनाम दंड विधान

नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः । न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः ॥पूज्य गांधी जी की आत्मा वैचारिक रुप से विचरण कर रही है देश-दुनिया में जीवन दर्शन रुप में विद्यमान है आपका विराट व्यक्तित्व,विराटता का अनुभव संकीर्णता से संभव नहीं है,त्याग-तपस्या,साधना,श्रेष्ठ चिंतन,प्राणि मात्र के पैरोकार,प्रकृति प्रेमी, हठधर्मिता और सादगी का नाम है 'मोहन दास करमचंद गांधी'|गांधी से प्रेम करने के लिए जितना जरुरी है गांधी को जानना उससे भी अधिक जरुरी है नफरत की वजह खोजना|गांधी एक व्यक्ति नहीं वरन प्रणम्य अनुकरणीय व्यक्तित्व हैं,ऐसे व्यक्तित्व का अपमान करने की नादानी सूरज पर थूकने जैसी ओछी हरकत मात्र है,आप किसी के कुछ विचारों से असहमत हो सकते हैं कुछ प्रयोगों से असंतुष्ट हो सकते हैं लेकिन उसकी विराटता को सिरे से खारिज नहीं कर सकते|उसके अतुलनीय योगदान को कल्याणकारी सुकृत्यों को भूलाना तो बहुत दूर नजरांदाज भी नहीं कर सकते|हत्यारे गोडसे की महिमामंडना करना आपत्तिजनक ही नहीं अपराध भी है,कम से कम संवैधानिक पदासीन यह अपराध तो कतई स्वीकार्य नहीं होना चाहिए बल्कि ऐसी कलुषित अभिव्यक्ति आजादी ज...

"जनादेश वाली माननीय जनता"

"हम भारत के लोग, भारत को एक सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न, समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिकों को: सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त करने के लिए तथा उन सब में व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की और एकता अखंडता सुनिश्चित करनेवाली बंधुता बढ़ाने के लिए दृढ़ संकल्प हो कर अपनी इस संविधान सभा में आज तारीख 26 नवंबर, 1949 ई० "मिति मार्ग शीर्ष शुक्ल सप्तमी, संवत दो हज़ार छह विक्रमी) को एतद संविधान को अंगीकृत, अधिनियिमत और आत्मार्पित करते हैं."।                     उक्त उल्लेखित उद्देश्य या प्रस्तावना केवल शब्द मात्र नहीं हैं बल्कि भारतीय संविधान का सारगर्भित प्राण प्रतिष्ठित अप्रतिम,अतुलनीय वह शब्द स्वरुप है जो भारत के निवासियों को भारतीय बनाता है,अपने संविधान को जानना और मानना परम धर्म है,"जानें बिनु न होइ परतीती। बिनु परतीति होइ नहिं प्रीती॥"जैसा कि प्रस्तावना का श्री गणेश ही 'हम भारत के लोग' से  आहुत किया गय...

'महाराष्ट्र का महातंत्र बेचारा जनतंत्र'

महाप्रजातंत्र की बानगी बना महाराष्ट्र संभवत: अभिभूत हो रहा है प्रजातांत्रिक मूल्यों से,और मीडिया इन अविस्मरणीय पलों की साक्षी बनकर 'चित्त और पट दोनों मेरी'चरितार्थ कर रही है|सभी सरकारी संस्थान ' चोरी करवा रहें हैं,जागते रहो श्लोगन' के साथ|विधायिका का चीर हरण हो रहा है 'महाभारत' के सभी पात्र (संवैधानिक पदासीन) अपनी -अपनी भूमिका का निर्वाहन तन्मयता से कर रहे हैं| माननीय नवनिर्वाचित विधायक गण चतुरसेन जी की 'नगर वधू ' की महती भूमिका का बखूबी निर्वाहन निज धर्म सरीखे कर रहे हैं, उम्र दराज सात दशकीय जनतंत्र अपनी अस्मत को येन-केन-प्रकारणेन ढकने की कोशिशों में रत है,यह भारत है नेता यहां के रत्न हैं,सत्ता ही स्वर्ग है, तथाकथित सेवा की सीढ़ी से स्वर्ग प्राप्ति ही राजनैतिक धर्म अघोषित प्रस्तावना है|                 जय हो 🙏 जय हो 🙏                    नरेन्द्र नाथ त्रिपाठी

जल का कल,जल-कल में

बचपन में पढ़ाया गया सुनाया गया "मछ्ली का जीवन पानी है"बात सही भी है पानी से बाहर मछ्ली के जीवन का अस्तित्व संभव नहीं है, लेकिन सच तो यह है कि पानी प्राणि मात्र की परम आवश्यकता है मय वनस्पति|रहीम जी ने कहा कि"बिन पानी सब सून",हमारे पुराणों और धर्म ग्रंथों में जल देव रुप है,पंच तत्वों में एक है, सारगर्भित यह है कि पानी है तो जीवन है|              पानी के अभाव की क्षणिक कल्पना मात्र का आभास झकझोर देगा हमको, प्रकृति प्रदत्त जीवन तत्व अधिकार से परे हैं लेकिन दुर्भाग्यवश प्राणी श्रेष्ठ मानव इन्हीं पर दावा करने की नादानी कर रहा है, प्राकृतिक अमूल्य उपहारों के प्रति कर्तव्य का भान न होना विसंगतियों का आमंत्रण सरीखा है|बात अगर जीवन दायक जल की करें तो तो अब हम जल-क्रीड़ा  नहीं बल्कि जल से क्रीड़ा कर रहे हैं मतलब जीवन दायक जल से मानव जाति खेल रही है,दोहन कर रही है अधिकार के भ्रम में|जबकि प्रकृति प्रदत्त जीवन हेतु उपहारों के सदुपयोग में संकोच और दुरुपयोग में लज्जा आनी चाहिए|            जल का कल जल-कल में निहित है, नदियों में है,त...

एक प्रतीक आदर्श दूजा बर्बर

राम लोकाभिराम हैं,साक्षात भगवान हैं, आराध्य हैं, मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम आस्था हैं कल्याणकारी जीवन,समाज और भू लोक के लिए सर्व मान्य आदर्श हैं|जबकि बाबर बर्बर शासक मात्र,प्रथम दृष्टया राम से बाबर की तुलना करना उपहासिक ही नहीं मूर्खता का भी परिचायक है|खुदा से तुलना करने में कोई हर्ज नहीं बल्कि खुदा की भी रजामंदी हो सकती है क्योंकि "ईश्वर अल्ला तेरो नाम सबको सम्मति दे भगवान"ऐसे तुलना भाव से तमाम द्वन्द स्वमेव शान्त हो जाएंगे और मानव कल्याण हेतु मार्ग प्रशस्त हो जाएंगे,राम में ही रहीम नजर आएंगे|           प्रचलित बहुविवादित अयोध्या विवाद का सुखद कल्याणकारी समाधान कुछ कलुषित मुस्लिम जमात को रास न आना दुर्भाग्यपूर्ण है| माननीय सर्वोच्च न्यायालय की पांच सदस्यीय संविधान पीठ के सर्व सम्मति फैसले को चुनौती का मंसूबा केवल और केवल फासले का पैरोकार हो सकता है,बदले में फजीहत वाली सौगात| अब नेक दिल मुस्लिम धर्म गुरुओं को और प्रबुद्ध मुस्लिम भाइयों को आगे आना चाहिए विकास और प्रगति के वास्ते एक भारत नेक भारत श्रेष्ठ भारत के लिए नया अध्याय लिखने के लिए, उन्मादियों को करारा जवा...

"शैक्षिक प्रदूषण बनाम जेएनयू"

शिक्षाविदों, दार्शनिकों और महापुरूषों के द्वारा'शिक्षा' की परिभाषाएं पढ़ी गई सुनी गई, लेकिन देश के सुप्रसिद्ध शिक्षण संस्थान 'जेएनयू' से जो अकल्पनीय परिभाषाएं निकल कर आ रही हैं वो न तो कभी पढ़ी गई होंगी और न ही सुनी गई होंगी|चन्द मुठ्ठी भर लोगों द्वारा संस्थान का शैक्षिक वातावरण प्रदूषित किया जा रहा है, दुर्भाग्यपूर्ण विरोधाभास यह है कि जिन कंधों पर देश की सुख-शांति-समृद्धि की जिम्मेवारी समझी जाती है वहीं कंधे देश की एकता-अंखडता-संप्रुभता की अर्थी का मनोरथ पाल रहे हैं| यद्यपि यह सब राजनीति से प्रेरित भी हो सकता है लेकिन तब मामला देशहित के लिहाज अधिकाधिक घातक और गंभीर हो जाता है| सोचनीय और चिंतनीय यह है कि जो छात्र श्रृंखला और राजनीति भारत के टुकड़े-टुकड़े का मंसूबा रखती हो, आंतकवादी को नायक मानती हो जो आतंक की बरसी का जश्न मनाती हो,जो हमारे प्रणम्य प्रतीकों का तिरस्कार करती हो! उससे राष्ट्र हित की जरा सी भी उम्मीद क्या आत्मघाती नहीं होगी?        ऐसी छात्र श्रृंखला की बेशर्मी पर हैरानी होती है कि हम देश वासियों के कर से लगभग चार लाख(४०००००/) प्रतिवर्ष प्रतिछात्र सरकार...

"शैक्षिक प्रदूषण बनाम जेएनयू"

शिक्षाविदों, दार्शनिकों और महापुरूषों के द्वारा'शिक्षा' की परिभाषाएं पढ़ी गई सुनी गई, लेकिन देश के सुप्रसिद्ध शिक्षण संस्थान 'जेएनयू' से जो अकल्पनीय परिभाषाएं निकल कर आ रही हैं वो न तो कभी पढ़ी गई होंगी और न ही सुनी गई होंगी|चन्द मुठ्ठी भर लोगों द्वारा संस्थान का शैक्षिक वातावरण प्रदूषित किया जा रहा है, दुर्भाग्यपूर्ण विरोधाभास यह है कि जिन कंधों पर देश की सुख-शांति-समृद्धि की जिम्मेवारी समझी जाती है वहीं कंधे देश की एकता-अंखडता-संप्रुभता की अर्थी का मनोरथ पाल रहे हैं| यद्यपि यह सब राजनीति से प्रेरित भी हो सकता है लेकिन तब मामला देशहित के लिहाज अधिकाधिक घातक और गंभीर हो जाता है| सोचनीय और चिंतनीय यह है कि जो छात्र श्रृंखला और राजनीति भारत के टुकड़े-टुकड़े का मंसूबा रखती हो, आंतकवादी को नायक मानती हो जो आतंक की बरसी का जश्न मनाती हो,जो हमारे प्रणम्य प्रतीकों का तिरस्कार करती हो! उससे राष्ट्र हित की जरा सी भी उम्मीद क्या आत्मघाती नहीं होगी?        ऐसी छात्र श्रृंखला की बेशर्मी पर हैरानी होती है कि हम देश वासियों के कर से लगभग चार लाख(४०००००/) प्रतिवर्ष प्रतिछात्र सरकार...

दाखिल से पहले खारिज

कांग्रेसाचरण की वंश बेल क्षत्रप धारक राहुल जी का राजनैतिक आचरण अनापेक्षित ही नहीं आपत्तिजनक भी है|आपकी बयानबाजी और भाषण कला  राजनैतिक अपरिपक्वता की परिचायक सिद्ध हो रही है, प्रजातांत्रिक मूल्यों के प्रति औसत दर्जे का अविश्वास जन-गण-मन को आहत करता है, प्रधानमंत्री श्री मोदी के प्रति आपकी खीझ ने जाने-अनजाने व्यक्तिगत रुप धारण कर लिया है,इस परिप्रेक्ष्य में आपको न तो प्रधानमंत्री पद की गरिमा का ख्याल रहा और न ही स्वयं के राजनैतिक व्यक्तित्व की चिंता,कहना समीचीन है कि भारतीय राजनीति में आप दाखिल होने से पहले खारिज को चरितार्थ कर रहें हैं अब तक,जबकि आज देश भारत को पहले से अधिक आवश्यकता है 'कांग्रेस' की|सत्ता रुढ़ होना और विपक्ष की भूमिका निभाना चक्रीय परिवर्तन है,कल जो विपक्ष था आज पक्ष है और आज जो  पक्ष है कल विपक्ष होगा लेकिन दोनों के लिएराष्ट्र धर्म सर्वोपरि है|आपको राष्ट्र धर्म निर्वाहन की बहुत-बहुत शुभकामनाएं|

"आरक्षण का आकर्षण"

देश भारत में लगभग 70% जनसंख्या  आरक्षण की लाभार्थी है।तो यक्ष प्रश्न यह है कि आखिरकार 70 वर्षों के इस आरक्षण वाले विकास को लकवा क्यों मार गया।आसमान खा गया या धरती निगल गयी आरक्षण वाले विकास को।मत भूलें गरीब,गरीब होता है शोषित-पीड़ित,शोषित-पीड़ित होता है इनकी कोई जाति नही होती।वास्तव में आज जाति दो ही शेष हैं एक अमीर एक गरीब।गौरतलब हो विकास का रथ जातिगत आरक्षण की आपाधापी से तो हांका ही नही जा सकता,विगत सात दशक ज्वलंत उदाहरण हैं पुष्टि भी|परिस्थितियां कल्याणकारी वातावरण के लिए क्रान्तिकारी परिवर्तन चाहती हैं, श्रीगणेश भी जनसामान्य को ही करना है 🙏